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यूक्र
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सहजानन्दशास्त्रमालायां
जन्मक्षरण: स एव मृत्पिण्डस्य नाशक्षणः स एव च कोटिद्वयाविरूद्स्य मृत्तिकात्वस्य स्थितिक्षण: । तथा अन्तरङ्गबहिरङ्गसाधनारोप्यमाण संस्कारसन्निधी य एवोत्तरपर्यायस्य जन्मक्षणः स एव प्राक्तन पर्यायस्य नाशक्षरणः स एव च कोटिद्वयाधिरूढस्य द्रव्यत्वस्य स्थितिक्षणः । यथा वर्धमानमृडमृत्तिकात्वेषु प्रत्येकवर्तीत्यप्युत्पादव्ययश्रीव्या रिण त्रिस्वभावस्पशिन्यां मृत्तिकायां सामस्त्येनैकसमयएवावलोक्यन्ते तथा उत्तरप्राक्तन पर्यायद्रव्यत्वेषु प्रत्येकवर्तीन्यप्युत्पादव्ययीव्याणि त्रिस्वभावस्पर्शिनि द्रव्ये सामस्त्येनंकसमय एवावलोक्यन्ते । यथैव च वर्धमानपिण्डमृत्तिकाल्व वर्तीन्युत्पादव्ययश्रीव्याणि मृत्तिचैव न वस्त्वन्तरं तथैवोसरप्राक्तन पर्यायद्रव्यत्ववर्तीन्यप्युत्पादव्ययीव्याणि द्रव्यमेव न खल्वर्थान्तरम् ।। १०२ ।।
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तम्हा तस्मात् - पंचमी एक० निरुक्ति-सम् अब ऐतु इति समवेतवान् कर्मवाच्ये समवेतं । समास- संभव: स्थितिः नाशश्च इति संभवस्थितिनाशाः तैः संशिताः संभवस्थितिनाशसंज्ञितः स्थिति संभवनाशसंज्ञितारच ते अर्थाः इति संभवस्थितिनाशसंज्ञितार्थाः । १०२ ।।
किया गया था। अब इस गाथा में उत्पाद आदिकोंका क्षणभेद निराकृत करके द्रव्यपना प्रकट किया गया है।
तथ्यप्रकाश - ( १ ) वस्तुका जन्मक्षण जुदा है, नाशक्षण जुदा है व स्थितिक्षण जुदा हैं ऐसी शंका नहीं करना चाहिये, क्योंकि जन्म नाश श्रीव्य द्रव्यका नहीं देखा जाता, किन्तु. पर्यायोंमें देखा जाता है । (२) अन्तरङ्ग बहिरङ्ग साधनपर हुए संस्कारको सन्निधिमें जो हो उत्तरपर्यायका उत्तरक्षण है वही पूर्व पर्यायका नाश क्षण है और वही दोनों कोटि में अधिरूढ़ द्रव्यपनेका स्थितिक्षरण है । ( ३ ) द्रव्य में उत्पाद व्यय धीव्य एक समय में हो देखे जाते हैं । (४) उत्तरपर्यायवर्ती उत्पाद पूर्वपर्यायवर्ती विनाश द्रव्यत्ववर्ती प्रोव्य एक द्रव्य हो है अन्य अन्य नहीं ।
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सिद्धान्त - ( १ ) द्रव्य उत्पादव्ययनौव्यात्मक होनेसे त्रिलक्षण सत्तामय है । दृष्टि - १ - उत्पादव्ययसापेक्ष श्रशुद्ध द्रव्यार्थिकनय ( २५ ) ।
प्रयोग --- मिथ्यात्व पर्यायका व्यय होता हुम्रा मुझमें सम्यवत्व पर्याय होगा, प्रज्ञान पर्यायका व्यय होता हुआ मुझमें केवलज्ञान पर्याय होगा, उस सब विकासका उपाय सहज ज्ञानस्वभाव अन्तस्तत्वमें आत्मत्वका अनुभवन है यह तथ्य जानकर निज सहज ज्ञानदर्शनसामान्यात्मक चैतन्यस्वभाव में प्रात्मत्व अनुभवना ॥१०२॥
BALLELL
द्रव्यके उत्पाद व्यय श्रीव्यको अनेक द्रव्यपर्यायके द्वारा विचारते हैं [ द्रव्यस्य ] प्रव्यका [ अन्यः पर्यायः ] अन्य पर्याय तो [प्रादुर्भवति ] उत्पन्न होता है [च] और [ अन्य: