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सहजानन्दशास्त्रमालायां
पद्याभ्यो ६ स्वरूपपररूपस्वपररूपयोगपोरादिश्यमानस्य स्वरूपेरण सप्तः, पररूपेण सतः, स्वपररूपाभ्यां युगपदक्तुमशक्यस्य, स्वपररूपाभ्यां क्रमेण सतोऽसतश्च, स्वरूपस्दप१रूपयौपद्याभ्यां सतो वक्तुमशक्यस्य च, पररूपस्वपररूपयोगपद्याभ्यामसतो अक्तुमशक्यस्य च, स्वरूपपररूपस्वपररूपयोगपः सतोऽसतो वक्तुमशक्यस्य चानन्तधर्मशो द्रव्यस्यवेक धर्माभिस्य विवक्षिताविवक्षितविधिप्रतिषेधाभ्यामवत्तरन्ती सप्तभङ्गिकैवकारविश्रान्तमश्रान्ससमुच्चार्यमाहास्याकारामोधमन्त्रपदेन समस्तमपि विप्रतिषेधविधमोहमुदस्यति ॥ ११५ ॥ आदिष्ट अन्य । मूलधातु-- भू सत्तायां, अस् भुवि । उभयपदविवरण—त्ति इति ण न गुणो पुनः तु दुवि अपि बा-अव्यय । अवत्तवं अवतन्य पज्जायेण पर्यायेन-तृतीया एकावन्धन । के केन-तृ० ए० । तदुभयं आदिट्ट आदिष्ट अण्णं अन्य-प्र० एक० । अस्थि अस्ति हवदि भवति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन लिया। निरुक्तिवक्तुं योग्यं वक्तव्यं न बक्तव्य इति अवक्तव्यं, परि अयन पर्यायः ! समास - यो: उभयं तदुभयम् ।। १५५ ।। पौर स्वरूपपररूपके योगपचसे कहे जा रहे स्वरूपसे सत्, पररूपसे असत्. स्वाररूपस युगपत् कहा जानेके लिये अशक्य, स्वपररूपोंके द्वारा क्रमसे सत् व असत, स्वरूप और स्वपररूपयोगपद्य द्वारा सत् प्रवक्तव्य, पररूप व स्वपररूपयोगपद्यके द्वारा असत् प्रवक्तव्य, स्वरूप व पररूप व स्वपररूपयोगपद्यस सत्-असत् प्रवक्तव्य---ऐसे अनन्त धर्मों वाले द्रव्य के एक एक धर्म का प्राश्रय लेकर विवक्षित-अविविक्षितके विधिनिषेधके द्वारा प्रगट होने वाली सप्तभंगो सतत सम्यक्तया उच्चारण किये जा रहे स्यात्कार रूपी अमोघ मंत्र पदके द्वारा पचकार में रहने वाले समस्त विरोध-विषके मोहको दूर करती है ।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें एक द्रव्यके सदुत्पाद व असदुत्पाद का विरोध बताया गया था। अब इस गाथामें सर्वविरोधको दूर करने वाली सप्तभंगोका अवतार किया
गया है।
तथ्यप्रकाश--(१) वस्तु द्रव्यपर्यायात्मक है अतः किसी भी धर्मी वस्तु में किसी विवक्षासे जो धर्म कहना हो उसमें उसका प्रतिपक्षभूत धर्म भी अन्य दृष्टि से साधा जाता है । (२) द्रव्याथिक दृष्टि से व पर्यायाथिक दृष्टिसे जब दो धर्म स्वतंत्र परखे गये तब एक साथ उन्हें न कह सकनेके कारण एक प्रवक्तव्य धर्म भी हो जाता है। (३) जहाँ ३ धर्म हों उनके द्विसंयोगी धर्म तीन हो जाते हैं । (४) जहाँ ३ धर्म हों उनका त्रिसंयोगी धर्म एक हो जाता है । (५) एक एक धर्म ३, द्विसंयोगी धर्म ३ व निसंयोगी धर्म १, इस प्रकार सप्त भंगोंका समूह सप्तभंगी कहलाता है । (६) जीव द्रव्यदृष्टि से नित्य ही है, पर्यायष्टिसे अनित्य ही है, युगपदुभय दृष्टिसे प्रवक्तव्य ही है, क्रमशः द्रव्य पर्यायष्टि नित्य और अनित्य ही है क्रमशः