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सहजानन्दशास्त्रमालायां
विधाय केवलोन्मीलितेन द्रव्यार्थिकेन यदावलोक्यते तदा नारकतिर्यङ्मनुष्यदेव सिद्धत्व पर्यायात्मकेषु विशेषेषु व्यवस्थितं जीवसामान्य से कमवलोकयतामनचलो किलविशेषाणां तत्सर्वजीवद्रव्यमिति प्रतिभाति । यदा तु द्रव्यार्थिकमेकान्तनिमोलितं केलोन्मीलितेन पर्यायार्थिकेनावलोक्यते तदा जीवद्रव्ये व्यस्थितान्नारक तिर्यग्मनुष्य देव सिद्धत्व पर्यायात्मकान् विशेषानने कावलोकयतामनबलोकितसामान्यानामन्यदन्यत्प्रतिभाति । द्रव्यस्य तत्तद्विशेषकाले तत्तद्विशेषेभ्यस्तन्मयत्वेनानन्यत्वात् गणतृणपर्णंदारुमयहव्यवाहवत् । यदा तु ते उभे ग्रपि द्रव्याधिकपर्यायार्थिक तुल्यका लोन्मीलिते विधायत इतश्चावलोक्यते तदा नारक तिर्यङ्गमनुष्यदेव सिद्धत्व पर्यायेषु व्यवस्थितं जीवसामान्य जीवसामान्ये च व्यवस्थिता नारकतिर्यग्मनुष्य देव सिद्धत्व पर्यायात्मका विशेषाश्च तुल्यकालमेवावलोक्यन्ते । तत्रैकचक्षुरवलोकनमेक देशावलोकनं द्विचक्षुरयलोकनं सर्वावलोकनं । ततः सर्वावलोकने द्रव्यस्यान्यत्वानन्यत्वं च न विप्रतिषिध्यते ॥ ११४ ॥
एकवचन किया। तक्काले तत्काल सप्तमी एकवचन | सम्मयतादो तन्मयत्वात् पचमी एकवचन । निरु वित-- द्रवतीति द्रव्यं तेन निर्वृत्तं तन्मयं तस्य भावः तन्मयत्वं तस्मात् । समास- द्रव्यं अर्थः प्रयोजन यस्य स द्रव्यार्थिकः तेन द्रः पर्यायः अर्थः प्रयोजनं यस्य सः पर्यायार्थिकः तेन प० ॥ ११४ ॥
स्वरूप त्रैकालिक है । (३) पदार्थका विशेषस्वरूप क्षण क्षण में नया नया है । ( ४ ) सामान्य स्वरूपको जानने वाला नेत्र द्रव्यार्थिकनय है । (५) विशेषस्वरूपको जानने वाला नेत्र पर्याया थिंक नय है । (६) पर्यायार्थिक नेत्रको बंद कर केवल द्रव्यामिक नेत्रसे दिखनेपर नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव सिद्ध पर्यायविशेषों में एक जीवद्रव्य ही प्रतिभान होता है, क्योंकि यहाँ विशेष देखे नहीं गये । ( ७ ) द्रव्याधिक नेत्रको बंद कर केवल पर्यायार्थिक नेत्रसे जीवद्रव्य में व्यवस्थित नारकादि पर्यायोंको देखनेपर वे सब विशेष अन्य ग्रन्थ हो ज्ञात होते हैं, क्योंकि यहाँ जीवसामान्य देखा नहीं गया । (८) जब द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक दोनों नेत्रों को एक साथ खोलकर देखा जाय तब नारकादि पर्यायोंमें व्यवस्थित जीवद्रव्य व जीवद्रव्य में व्यवस्थित नारकादि पर्यायें एक साथ देखे जाते हैं । (६) एक नय नेत्र से देखनेपर एकदेश दिखाई देता है । (१०) दोनों नय नेत्रोंसे देखनेपर सब दिखाई देता है । (११) सबके अवलोकन में द्रव्यका अन्यत्व व अनन्यत्व अविरोध सुविदित होता है । ( १२ ) द्रव्याथिक नयसे पर्यायसन्तान रूप में द्रव्य एक ही विदित होता । (१३) पर्यायार्थिकनयसे द्रव्य पर्यायरूप में भिन्न-भिन्न विदित होता । (१४) सापेक्षतया दोनों नयोंसे एक साथ निरखनेपर द्रव्यका एकत्व व अनेकत्व एक साथ विदित होता ।
सिद्धान्त - ( १ ) एक ही द्रव्य प्रतिसमय अनिवारित विशेषमय निरखा जाता है ।