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सहजानन्दशास्त्रमालायां अथ ज्ञानकर्मकर्मफलान्यात्मत्वेन निश्चिनोति----
अप्पा परिणामप्पा परिणामो गाणाकम्मफलभावी । तम्हा गणाम कम्म फलं च श्रादा मुगेदब्बो ॥१२५॥ श्रात्मा परिणामात्मक, परिणाम नि ज्ञानकर्मफलभायी।
इससे ज्ञान कर्म फल, तीनोंको हि आत्मा मानो ॥१२॥ आत्मा परिणामात्मा परिणामो ज्ञानकर्मल भाबी । तरभात ज्ञानं काम पलं चात्मा ज्ञाशयः ।। ५२५ ।।
मात्मा हि सावत्परिणामात्मैव, परिणामः स्वयमात्मेति स्वयमुक्तस्वात् । परिणामस्तु चेतनात्मकत्वेन ज्ञानं कर्म कर्मफलं वा भवितुं शोलः, तन्मयत्याच्चेतनाया: । ततो जानं कर्म कर्मफल चात्मैव । एवं हि शुद्ध द्रव्यनिरूपयायां परद्रयसंपर्कासंधवात्पर्यायाणां द्रव्यान्तःप्रलया. नेच शुद्धद्रव्य एवात्मावतिष्ठते ।। १.५ ।।
. नामसंज-अप्प परिणामप्प परिणाम णाण कम्मल भावि त णाण कम्म फल च न रोदय 1 ame ातुसशः मुण ज्ञाने। प्रातिपदिक-आत्मन् परिणामात्मन् परिणाम ज्ञान कर्मफलभाविन तत् भान
कर्मन फल आत्मन ज्ञातव्य । मूलधातु-शा अवयोबने । उभयपदविवरण...अप्पा जात्मा परिणाममा
एरिणामात्मा कम्मफलभावी ज्ञानकर्गकलमावी-प्रथमा एक० । तम्हा तस्मात-पंचमी एe rat MAN ज्ञान कम्म कर्म फलं आदा आत्मा-पथमा एकवचन । मुगदम्वों ज्ञातव्य:--प्रथमा एक वचन कृदंत किया।
नियक्ति- अंततीति आत्मा, क्रियते यत्तत् कमें, अप्तिः शान, फलनं फल, परिणगनं परिणामः । समास
परिणाम एवं आत्मा यस्य सः परिणामात्मा, ज्ञानं च कर्म च फल जति ज्ञानकर्ममा लान ते भवितं Joi शील. ज्ञानकर्मफलभावो || १२५ ।।
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Kam शानमय, कर्ममय अथवा कर्मफलमय होती है। इसलिये ज्ञान, कर्म और कर्मफल प्रात्मा ही Any है । इस प्रकार वास्तव में शुद्ध द्रव्यके निरूपणमें परद्रव्यका सम्पर्क असंभव होनेसे और पयांपों का द्रवयुके भीतर प्रलय हो जाने से प्रारमा शुद्ध द्रव्य हो रहता है।
प्रसङ्गविवरण----अनन्तरपूर्व गाथामें ज्ञान, कर्म व कर्मफलका स्वरूप बताया गया या। अब इस गाथामें ज्ञान, कर्म व कर्मफलको प्रात्मरूपसे निश्चित किया गया है।
तथ्यप्रकाश--(१) द्रव्य होने के कारण प्रात्मा परिणामस्वरूप हैं । (२) प्रात्माका परिणाम चेतनात्मक है । (३) चेतनात्मक होनेके कारण परिणाम ज्ञान, कर्म व कर्मफलरूप है, क्योंकि चेतना चेतनाकर्म व चेतनाकर्मफलसे तन्मय है । (४) चेतनात्मक होनेसे ज्ञान कर्म व कर्मफल प्रात्मा हो है । (५) एक द्रव्यके निरूपण में परद्रव्य से सम्पर्कका अभाव होनेसे व पर्यायोंका द्रव्यमें अन्तः प्रलय होनेसे प्रात्मा शुद्ध द्रव्य ही ठहरता है।
सिद्धान्त---(१) ज्ञान, कर्म व कर्मफल प्रात्मरूप ही हैं।
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REV:29555
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