________________
:
i
२३२
सहजानन्दशास्त्रमालायां
सतीतरेतराश्रयदोषः न हि । अनादिप्रसिद्धद्रव्यकर्माभिसंबद्धस्यात्मनःप्राक्तनद्रव्यकर्मणस्तत्र हेतु त्वेनोपादानात् । एवं कार्य कारणभूतन व पुराणद्रव्य कर्मत्वादात्मनस्तथाविधपरिणामो द्रव्यकमेव. तथात्मा चात्मपरिणामकर्तृत्वाद्द्रव्यकर्म कर्तायुपचारात् ॥१२१॥
कम्ममलिमको कर्ममलीमसः - प्रथमा एक परिणाम कम्मसंजुत्तं कर्मसंयुक्तं द्वितीया एक । ततो त अव्यय पंचम्यर्थे । लहदि लभते सिलिसवि क्लिष्यति वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया। कम्म कर्म परिणामी परिणामः प्रथमा एक० | तम्हा तस्मात् पंचमी एकः । निरुक्ति-अति सततं गच्छति जानाति इति आत्मा । समास-+ स- (कर्मणा मलीमसः कर्ममलीमस/कर्मिणा संयुक्तः कर्मसंयुक्तः) कर्मयुक्तम् ॥ १२१ ॥
तथ्यप्रकाश - ( १ ) जीवका विकार परिणाम द्रव्यकर्मबन्धका निर्मित है। (२) कर्मका विपाक जीवके विकारपरिणामका निमित्त है । ( ३ ) अनादिपरम्परासे जीवविकार व कर्मदशा में निमित्तनैमित्तिक प्रसंग चला आ रहा है । (४) जीवविकारका कार्य (नैमित्तिक) कर्मणा है, जीवविकारका कारण (निमित्त ) कर्मदशा है, इस कारणा जीवविकार उपचार में द्रव्यकर्म ही है । (५) जीवविकारके निमित्तसे द्रव्यकर्मका ग्रास बन्ध होता है यतः जीव विकार उपचारसे द्रव्यकर्मका कर्ता है । ( ६ ) द्रव्यकर्मविपाकके निमिससे जीवविकार होता है, अतः द्रव्यकर्म उपचारसे जीवविकारका कर्ता है | ( ७ ) द्रव्यकर्म विपाकके होनेपर हो जोवन विकार होता है, अतः जीवविकार उपचारसे द्रव्यकर्मका कार्य है । ( = ) जीवविकार के होनेपर द्रव्यकर्मका प्रबन्ध होता है, ग्रतः द्रव्यकर्म उपचारसे जीवका कार्य है ।
सिद्धान्त - - (१) जीवविकार व द्रव्यकर्मदशा में परस्पर निमित्तनैमित्तिक योग है । (२) जीव विभावरूप संसारका कर्ता है । (३) जीव द्रव्यकर्मका कर्ता है । ( ४ ) जीवविकार व्यकर्मका कार्य है । ( ५ ) द्रव्यकर्म जीवविकारका कर्ता है । (६) द्रव्यकर्म जीवका कार्य है। दृष्टि - १ - निमित्त दृष्टि ( ५३८ ) । २- अशुद्धनिश्चयनय (४७) । ३- परकर्तृत्व अनुपचरित प्रसद्भूत व्यवहार ( १२६) । ४- परकर्मत्व प्रसद्भुत व्यवहार (१३०) |५परकर्तृत्व अनुपचारित ग्रसद्भूत व्यवहार (१२६ ) । ६ - परकर्मत्व श्रसद्भूत व्यवहार (१३० ) । प्रयोग-- मंश्लेषसे मुक्ति पानेके लिये स्वभावविभावका भेदविज्ञान करके श्रात्मस्वभाव में ही ग्रामत्वको अनुभवना ॥ १२१ ॥
श्रव परमार्थ से ग्रात्मा द्रव्यकर्मका कर्ता है यह प्रकाशित करते हैं [ परिणामः ] परिणाम [ स्वयम् ] स्वयं [ श्रात्मा ] आत्मा है, [ पुनः सा ] और वह [क्रिया जीवमयी इति भवति ] क्रिया जीवके द्वारा रची हुई होनेसे "जीवमयो" ऐसी है: [ किया ] और क्रियाको [ कर्म इति मता ] कर्म माना गया है; [तस्मात् ] इस कारण [ कर्मरण: कर्ता तु न ] द्रव्यकर्म का कर्ता तो नहीं है ।