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सहजानन्द शास्त्रमालायां
गुणभूत एव द्रव्यस्य स्वभावभूतः परिणामः द्रव्यवृत्तेहि त्रिकोटिसमयस्पशिन्याः प्रशिक्षण तेन तेन स्वभावेन परिणामनाद्रव्यस्वभावभूत एवं तावत्परिणामः । स त्वस्तित्वभूतद्रव्य दृस्यात्मकत्वात्सदविशिष्टो द्रव्यविधायको गए। एवेति सत्ताद्रव्य योगुणगुणिभावः सिद्धयति ।।१०। परिणाम तत् गुण सदवशिष्ट सत् अवस्थित स्वभाव द्रव्य इति जिनोपदेश इदम् । मूलधातु-विशिय असवर्वोपयोगे चुरादि, अव प्ठा गतिनिवृत्तौ । उभयपदविवरण-जो य: दध्वसहावो द्रव्यस्वभावः परिणामो परिणामः सोमः सदसिट्ठो सदवशिष्टः सदयट्टिदं सदस्थित दन्वं द्रव्यं जिणोपदेसो जिनोपदेशः अयंप्रथमा एकवचन । सहावे स्वभावे-सप्तमी एक खत नि इसि-अव्यय । निरुक्ति-परिणामने परिणाम:, उपदेशून उपदेशः । समास-स्वस्य भावः स्वभाव दुव्यस्य स्वभावः द्रव्यस्वभावः, जिनस्य उपदेशः जिनोपदेश: 108 पाली द्रव्यवृत्तिका प्रतिक्षण उस उस स्वभावरूप परिमन होनेसे भले प्रकार द्रव्यका स्वभावभूत ही परिणाम है; और वह उत्पाद-व्यय प्रौव्यात्मक परिणाम अस्तित्वभूत उन्धको वृत्ति स्वरूप होनेसे, 'सत्' के अविशिष्ट, द्रव्यका रचयिता गण ही है । इस प्रकार सत्ता और द्रव्य का गुण्ड-गुणी भाव सिद्ध होता है ।
प्रसंगविवरण-अनंतरपूर्व गाथामें बताया गया था कि द्रव्य व गरग में जो प्रतद्भाव कहा गया है सो उसका लक्षण सर्वथा अभाव नहीं है । अब इस गाथामें सत्ता व द्रव्य में गुरण. गुरिणभावको सिद्ध किया गया है।
तथ्यप्रकाश-(१) द्रव्य स्वभावमें नित्य अवस्थित रहनेसे सत् है । (२) द्रव्यका स्वभाव परिणाम है । ( ३ ) जो द्रव्यका स्वभावभूत परिणाम है वही सत्ता है और वह मस्तित्वसे प्रविशिष्ट है । (४) द्रव्याथिकको प्रधानतासे द्रव्यके स्वरूपका वृत्तिभूत अस्तित्व ही सत् कहा जाता है । (५) पर्यायाथिकको प्रधानतासे उस अस्तित्वसे अनन्य गण ही द्रव्यका परिणाम कहा जाता है। (६) सत्ता और द्रव्यका गुणगणिभाव युक्तिसे सिद्ध है।
सिद्धान्त----(१) निर्विकल्प वस्तुके परिचयका प्रारम्भ गुणगुणिभेदके व्यवहारसे होता
दृष्टि ----१ - गुणगुणिभेदक शुद्ध सदभूत व्यवहार (६६ब)।
प्रयोग--मुणगुरिणभेदसे प्रात्मबस्तुका मौलिक परिचयका संकेत पाकर अभेद प्रात्मवस्तुमें परम विश्राम पाने के लिये भेदकल्पना छोड़कर चैतन्यमात्र आत्मवस्तुको अनुभवनेका सहज पौरुष होने देना ।।१०६॥
__अब मुरण और गुणीके नानापनका खण्डन करते हैं- [इह] इस विश्वमें [गुरणः इति वा कश्चित्] गुरण ऐसा कुछ [पर्यायः इति वा] या पर्याय ऐसा कुछ [द्रव्यं विना नास्ति] द्रव्यके बिना नहीं होता; [पुनः द्रव्यत्त्वं भावः] और द्रव्यत्व उत्पादव्ययभोव्यात्मक