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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका भयासत्पादमन्यत्वेन निश्चिनोति-----
मणुवो रण होदि देवो देवो वा माणुसो व सिद्धो वा। एवं ग्रहोजमाणो अणण्णा भावं कधं लहदि ॥ ११३ ॥ नर नहि सुर सिद्धादिक, सुर नहिं नर सिद्ध प्रादि परिणतिमें।
इक अन्यमय न होता, तब उनमें एकता कसे ॥ ११३ ॥ मतुजो न भवति देवो देवो वा भानुपो वा सिद्धो बा। एवमभवन्ननन्यभायं कथं लभते ॥ ११३ ।। म पीया हि पर्यायभूताया आत्मव्यतिरेकव्यक्तेः काल एव सत्त्वात्ततोऽन्य कालेषु भवत्यसन्त एव । यश्च पर्यायारणों द्रव्यत्वभूयान्वयशक्त्यानुस्यूतः क्रमानुपाती स्वकाले प्रादुर्भावः तस्मित्पर्यायभूताया आत्मव्यतिरेकमक्तेः पूर्वमसत्त्वात्पर्याया अन्य एव । ततः पर्यायामामन्य. स्वेन निश्चीयते पर्यायस्वरूपकर्तृ करणाधिकरणभूतत्वेन पर्यायेभ्योऽपूयम्भूतस्य द्रव्यस्यासदुत्पादः।
सामसंज्ञ---मशुव ण देव वा मास व गिद्ध एवं अहोज्जमाण अणण्णाभाव वधं । धातुसंज...हो । सत्ताया, लभ प्राप्तौ । प्रातिपदिक- मनुज देव न मानुष वा सिंद्य एवं अभवत् अनन्यभाव कथं । मूलधातु
तात्पर्य----पर्याय एक दूसरे रूप नहीं हैं, प्रतः पर्याय अन्य अन्य ही हैं, अनन्य नहीं।
टोकार्थ--पर्याय पर्यायभूत स्वव्यतिरेकव्यक्ति कालमें ही विद्यमान होनेसे, उससे प्रत्य कालोंमें विद्यमान ही हैं । और जो पर्यायोंका द्रव्यत्वभुत अन्वयशक्ति के साथ गुथा या समानुपाती स्वकाल में उत्पाद है उसमें पर्यायभूत स्वव्यतिरेक व्यक्तिका गहले असत्त्व होनेसे पर्याय अन्य हैं । इस कारण पर्यायोंकी अन्यताके द्वारा निश्चित किया जाता है कि पर्यायोंके स्वरूपका कर्ता, करण और अधिकरण होनेसे पर्यायोंसे अपृथग्भूत द्रव्य असदुत्पाद है। स्पष्टीकरण-मनुष्य, देव या सिद्ध नहीं है, और देव, मनुष्य या सिद्ध नहीं है। ऐसा न होता इसा अनन्य अर्थात् वहोका वही कैसे हो सकता है कि जिससे अन्य हो न हो और जिससे मनुष्यादि पर्याय उत्पन्न होती है जिसके ऐसा जीव द्रव्य भी कंकणादि पर्याय उत्पन्न होती है जिसके ऐसे सुवर्णकी तरह प्रति पर्यायपर अन्य न हो ?
प्रसंपविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें सदुत्पादको द्रव्यसे अनन्य निश्चित किया गया या। अब इस गाथामें असदुत्पादको अन्यपनेरूपसे निश्चित किया गया है।
तथ्यप्रकाश-(१) पर्याय अपने परिणमनकालमें ही होती है, पूर्व या पश्चात् अन्य कालमें नहीं, अतः पर्यायका उत्पाद पर्यायदृष्टिमें असत् का उत्पाद कहा जाता है । (२) एक द्रव्यमें होने वाले पर्याय भी एक दूसरेसे अन्य अन्य ही हैं। (३) पर्यायदृष्टिसे अन्य अन्य पायोंका उत्पाद पर्यायसे अपृथग्भूत भी द्रव्यका असदुत्पाद कहा जाता है । (४) चंकि पर्याय
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