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प्रवचनसार-राप्तदशाङ्गी टीका
२११ दाविपर्यायनिष्पादिका व्यतिरेकव्यक्तीस्तास्ताः संक्रामतो हेम्नः सद्भावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः । यदा तु पर्याया एवाभिवीयन्ते न द्रव्यं तदा प्रभवावसानलाञ्छनाभिः क्रमप्रवृत्ताभिः पर्यायनिपादिकाभिव्यतिरेकव्यक्तिभिस्ताभिस्ताभिः प्रभवावसानजिता योगपद्यप्रवृत्ता द्रध्यनिष्पादिका अन्वयशक्तीः संक्रामतो द्रव्यस्यास द्धावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः हेभवदेव । तथाहि .....यदाङ्गदादिपाया एवाभिधीयन्ते न हेम तदाङ्गदादिपर्यायसमानजीविताभिः क्रमप्रबृत्ताभिरङ्गदादिपर्याघनिष्पादिकाभिर्व्यतिरेकच्यक्तिभिस्ताभिस्ताभिहेमसमानजीविता योगपद्यप्रवृत्ता हेमनिष्पादिका अन्वयशक्ती संकामतो हेम्नोऽसद्धावनिबद्ध एव प्रादुर्भावः । अथ पर्यायाभिधेयतायामप्यसत्प. उलभष प्राप्ती । उभयपदविवरण--एवंविहं एवंविधं सदा-अव्यय । सहावे स्वभावे-शातमी एक० । दध्वं द्रष्य-प्रथमा एक । दव्वस्थपज्जयहि-तृतीया बह० । द्रव्यार्थपर्यावार्थाभ्यां-तृतीयो हिवचन । सदबद्ध है और पर्यायोंकी कथनोंके समय असद्भावनिबद्ध है। स्पष्टीकरण ---- जब द्रव्य ही कहा जाता हैपर्याय नहीं, तब उत्पत्ति विनाशसे रहित, युगपत् प्रवर्तमान, दम्पनियादक अन्वय शक्तियोंके द्वारा, उत्पत्तिविनाशलक्षण वाली, क्रमशः प्रवर्तमान, पर्यायोंकी निष्पादिका उन-उन व्यतिरेकव्यक्तियों को प्राप्त होते जाने वाले द्रव्यके सद्भावनिबद्ध ही उत्पाद है; सुवाकी तरह । जमे जब सुवर्ण ही कहा जाता है, बाजूबंध आदि पर्याय नहीं, तब रावणं जितनी स्थायी. युगपत् प्रवर्तमान, सुवर्णनिष्पादक अन्वयशक्तियों के द्वारा, बाजूबंध इत्यादि पर्याय जितनी टिकने वाली क्रमशः प्रवर्तमान, बाजूबंध इत्यादि पर्यायोंकी निष्पादिका उन उन व्यतिरेकव्यक्तियों को प्राप्त होने वाले सुवर्णका सद्भावनिबद्ध ही उत्पाद है । और जब पर्यायें हो कहो जाती हैं द्रव्य नहीं, तब उत्पत्ति विनाश जिनका लक्षण है ऐसी, क्रमशः प्रवर्तमान, पर्यायनिष्पादिका उन उन व्यतिरेकव्यक्तियों के द्वारा, उत्पत्ति-विनाश रहित, युगपत् प्रवर्तमान द्रव्यनिष्पादक अन्वयप्रक्तियोंको प्राप्त होने वाले द्रव्य के असद्भावनिबद्ध ही उत्पाद है: सुवर्णकी ही तरह । जैसे . जब बाजूबंधादि पर्यायें ही कही जाती हैं--सुवर्ण नहीं, तब बाजूबंध इत्यादि पर्याय जितनी टिकने वाली, क्रमशः प्रवर्तमान, बाजूबंध इत्यादि पर्यायोंकी निष्पादिका उन उन व्यतिरेकव्यक्तियोंक द्वारा, सुवर्ण जितनी टिकने वाली, युगपत् प्रवर्तमान, सुवर्णनिष्पादक अन्वयशक्तियोंको प्राप्त सुवर्णके असद्भावनिबद्ध ही उत्पाद है।
सब पर्यायोंकी कथनीके समय भी प्रसत्-उत्पादमें पर्यायों को उत्पन्न करने वाली वे वे " व्यक्तिरेफव्यक्तियाँ युगपत् प्रवृत्ति प्राप्त करके अन्वय शक्तित्वको प्राप्त होती हुई पर्यायोंको द्रव्य भारता है। जैसे कि बाजूबंध अादि पर्यायोंको उत्तपन्न करने वाली वे वे व्यतिरेकव्यक्तियां युगपत् प्रवृत्ति प्राप्त करके अन्वयशक्तित्वको प्राप्त करती हुई बाजूध इत्यादि पर्यायोंको सुवर्ण
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