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प्रवचनसार... सप्तदशाङ्गी टीका प्रय गुणगुणिनो नात्वमुपहन्ति--
णत्थि गुणो त्ति व कोई पजाबो तीह वा विणा दव्यं । दव्वत्तं पुगण भावो तम्हा दब्बं सयं सत्ता ।। ११०॥
इन्ध बिना कोई गुण, अयदा पर्याय कोइ कुछ महिं है।
द्रव्यत्व भार उसका, श्रतः द्रव्य है स्वयं सत्ता ॥ ११० ॥ नास्ति गुण इति वा कश्चित् पर्याय इती वा विना द्रव्यम् । द्रध्यत्वं पुनर्भावस्तस्माद्दश्य स्वयं सत्ता ।।११०॥
न खलु द्रव्यात्पृथग्भूतो गुण इति ना पर्याय इति का कश्चिदपि स्यात् । धधा सुवर्णापृथरभूत तत्पीतत्वादिमिति मा तत्कुण्डलत्वादिकमिति था । अथ तस्य तु द्रन्यस्य स्वरूपा वृत्तिभूतमस्तित्वाख्यं यदव्यत्वं स खलु तद्भावाख्यो गुण एवं भवन् कि हि द्रव्यात्यूयम्भूतत्वेन वर्तते । न वर्तत एव । तहि द्रव्यं सत्ताऽतु, स्वयमेव ।। ११० ।।
नामसंजण गुण त्ति व कोई पजाति महश विणा दब्य दवत' पुण भाव त दब्य रायं सत्ता। बासुसज-- अस सत्तायां । प्रातिपदिक---- गुण इति वा कश्चितु पर्याय इति वा विना द्रव्य द्रव्यत्व पुनर राब तत द्रव्य स्वयं सत्ता । मूलधातु ....अस भुवि । उभयपदविवरण .... न त्ति इति व वा इह बा विणा विसा पुर्ण पुनः सयं स्वयं-अत्यय 1 मुणो गुणः पज्जाओ पर्यायः दव्वत्तं द्रव्यत्वं भावो भावः वयं द्रव्य संता-प्रथमा एकवचन । दध्वं द्रव्यं (विना द्रव्य)-द्वितीया एकवचन । अयि अस्ति-समान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया ! निरुक्ति----गुण्यते भियते द्रप प्रतिबोधनाय यैस्ते गुणा: । द्रध्यस्य भावः द्रव्यत्वं, भवन भावः ॥ ११०।। सदभाव है [तस्मात्] इस कारण द्रव्यं स्वयं सत्ता] द्रव्य स्वयं सत्तारू । है ।
तात्पर्य-गुणपर्यायवान व उत्पादन्यायध्रौच्यात्मक होनेसे द्रव्य स्वयं मत्स्वरूप है।
टोकार्थ---वास्तवमें द्रव्यसे पृथग्भूत गुण या पर्याय ऐसा कुछ भी नही होता; जैसेसुवासे पृथग्भूत उसका पीलापन आदि या उसका कुण्डलल्वादि नहीं होना । अब उस द्रव्य का स्वरूपका वृत्तिभूत अस्तित्व नामसे कहा जाने वाला जो द्रव्यत्य है वह वास्तव में तद्भाव नामसे कहा जाने वाला गुण ही होता हुप्रा क्या उस द्रव्यसे पृथकरूपसे रहता है ? नहीं रहला । तब फिर द्रव्य सत्ता होमो स्वयं ही ।
प्रसङ्गविवरण-अनन्तरपूर्व माथामें सत्ता और द्रव्य में गुणगुणिभावको सिद्ध किया गया था। अब इस गाथामें गुणगुणी भेदको नष्ट किया गया है।
तथ्यप्रकाश-(१) द्रव्यसे अलग कुछ भी गुण नहीं होता । (२) द्रव्य से अलग कहीं भी कुछ भी पर्याय नहीं होता। (३) द्रव्यका स्वरूप वृत्तिभूत जो अस्तित्वसे प्रसिद्ध द्रव्यत्व है वह इन्सका भावरूप गुण है । (४) द्रव्यका भावरूप गुण द्रव्यले पृश्यक नहीं रहता । (५)
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