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सहजानंदशास्त्रमालायां अग पृथक्त्वान्यत्वलक्षणमुन्मुद्रपति
पविभत्तपदेसत्तं पुधुत्तमिदि सासां हि वीरस्म । अण्णत्तमतभावो ण तच्भवं होदि कधमेगं ॥१०६॥ प्रविभक्तप्रदेशपने, को बतलाया पृथक्त्व शासनने ।
अन्यत्व अत झाव हि, न तद्भव एक कैसे हो ॥१०६।। प्रविभक्त प्रदेशवं पृथक्त्वमिति शासनं हि वी रम्य । अन्यत्वमतद्भावो न तद्भवत् भवति कय मेकन् ।।१०।।
प्रविभक्त प्रदेशात्वं हि पृथक्त्वस्य लक्षणम् । तत्तु सत्ताद्रव्ययोर्न संभाव्यते, गुणगुणिनोः अविभक्तप्रदेशत्वाभावात् शुक्लोत्तरी यवत् । तथाहि--यथा य एव शुक्लस्य गुणस्य प्रदेशात एवोत्तरीयस्य गुरिंगन इति तयोर्न प्रदेश विभागः, तथा य एष सत्ताया गुणस्य प्रदेशास्त एव
नामसंज्ञ-विभत्तपदेसत्त पुत्त इति सासण हि वीर अण्णत्त अतब्भाव ण तुभव कध एग! पातसंज्ञ-सास गासने, हो सत्तायां । प्रातिपदिक. विभक्तप्रदेशत्व पृथक्त्व इति शासन बीर अन्यत्व (५) द्रव्य सत्तासे अभिन्न है सो उसमें सत्ता प्रकट है । (६) भाव व भाववान अपृथक् होने से द्रव्य स्वयं ही सत्त्वरूपसे जाना जाता है।
सिद्धान्त-(१) द्रव्य स्वयं ही स्वरूपतः सत् है । दृष्टि–१- भेदकल्पनानिरपेक्ष गुद्ध द्रव्याथि कनय (२३) । प्रयोग-स्वयंको परिपूर्ण चतन्यात्मक सत् निरखकर स्वयंको स्वयमें अनुभवन! ।।१०५॥
प्रय पृथक्त्वका और अन्यत्वका लक्षण उन्मुद्रित करते हैं-~[प्रविभक्तप्रदेशत्वं] भिन्न भिन्न प्रदेशपना [पृथक्त्वं] पृथक्त्व है, [इति हि] ऐसा हो [वीरस्य शासन] वीरका उपदेश है । [अतभावः] उसरूप न होना अन्यत्व] अन्यत्व है । [न तत् भवत् ] जो उसरूप न हो वह [कथं एकम्] एक कैसे हो सकता है ?
तात्पर्य-भिन्न भिन्न प्रदेश होनेसे तो अन्यत्व जाना जाता है और सद्भाव न होने से ममत्व जाना जाता है ।
टीकार्थ-भिन्न प्रदेशपना पृथक्त्वका लक्षण है । वह तो सत्ता और द्रव्य में संभव नहीं है, क्योंकि गुण और गुणीमें विभक्तप्रदेशत्वका प्रभाव होता है---शुक्लत्व और वस्त्रको सरह । स्पष्टीकरण---जैसे-..-जो ही शुक्लत्व गुणके प्रदेश हैं वे ही वस्त्र गुणीके हैं, इस कारण रनमें प्रदेशभेद नहीं है; इसी प्रकार जो सत्तागुणके प्रदेश हैं वे ही द्रध्य गुणीके हैं, इस कारण जन में प्रदेशभेद नहीं है। ऐसा होने पर भी उन में अर्थात् सत्ता और द्रव्यमें अन्यत्व है, क्योंकि उनमें प्रत्यत्व के लक्षणका सद्भाव है । अतद्भाव अन्यत्वका लक्षण है । वह तो सत्ता और