________________
A NDIMBes
-
MAHARARIANDER
marathe
...........................
.....
सहजायन्दशास्त्रमालायां जातीया पर्याया विनश्यन्ति प्रजायन्ते च । समानजातीनि द्रव्याणि त्वविनष्टानुत्पन्नान्येवावतिष्ठन्ते । यथा चको मनुष्यत्वलक्षागोऽसमान जातीयो द्रव्यपर्यायो विनश्यत्यन्यस्त्रिदशत्वलक्षणः प्रजायते नौ च जीवपुद्गलौ अविनष्टानुत्पन्नावेवावतिष्ठते, तथा सर्वेऽप्यसमाननातीया द्रव्य पर्याया विनध्यन्ति प्रजायन्ते च असमान जातीनि द्रव्यारिण त्वविनष्टानुत्पन्नान्येवावलिष्ठन्ते । एवमात्मना ध्र वाणि द्रव्यपर्यायद्वारेगोत्पादव्ययीभूतान्युत्पादव्ययध्रौव्याणि द्रव्याणि भवन्ति
m......
.
.diximediaefiniwww
BRAND
दव द्रव्य-प्रथमा एकवचन । दव्वस्स द्रव्यस्य-षष्ठी एव० । तं तत-प्र० एक. पण प्रणष्टं उप्पणं उत्पन्न-पथमा एकवचन कृदन्त क्रिया । निरुक्ति-परि अयनं पर्यायःप्रवाण नष्टं प्रणष्टं।।१०३ ॥
तथ्यप्रकाश-(१) तोन अरगु वाला आदि समानजातीय अनेक द्रव्य पर्याय नष्ट होता है, चार अरगु वाला पादि समान जातीय पर्याय उत्पन्न होता है वहां वे अणु द्रव्य तो न ना होते न उत्पन्न होते, अवस्थित ही हैं । (२) मनुष्यरूप आदि असमान जातीय द्रव्यपर्याय नष्ट होता है, देव रूप आदि असमानजातीय द्रव्यपर्याय उत्पन्न होता है, वहां वे जीव और पुद्गल द्रव्य न नष्ट होते, न उत्पन्न होते, अवस्थित ही हैं । (३) अपने द्रव्यपनेसे ध्रुव और द्रव्य. पर्यायसे उत्पाद व्ययरूप द्रव्य ही उत्पादव्ययध्रौव्य हैं।
सिद्धान्त --- {१) द्रव्य सदा अवस्थित रहकर द्रध्यपर्यायरूपसे भो उत्पादव्यय करता
दृष्टि- १- सत्तासापेक्ष नित्य अशुद्ध पर्यायाथिकनय (३८) ।
प्रयोग—अनेक द्रव्यपर्यायरूपसे अपना उत्पाद होना कलंक है यह जानकर उस कलंकी से हटने के लिये प्रकलङ्क प्रात्मस्वभावमें आत्मत्व अनुभवना ॥ १०३ ॥
अब अन्यके उत्पाद व्यय ध्रौव्योंको एक द्रव्य पर्यायके द्वारा विचारते हैं.[सदविशिटं] स्वरूपास्तित्वसे अभिन्न [द्रव्यं स्वयं] द्रव्य स्वयं ही [गुरगतः गुरशान्तरं] गुणसे गुणान्तर रूप [परिणमते] परिणमित होता है, [तस्मात् च पुनः] इस कारणसे ही तब [गुणपर्याया: गुरणपर्याय [द्रव्यम् एव इति भरिंगताः] द्रव्य ही हैं इस प्रकार कहे गये हैं।
___ तात्पर्य-अपने स्वरूपास्तित्वसे अभिन्न द्रव्य गुणसे गुणान्तररूप परिणमता है सो के गुणपर्यायें द्रव्य ही हैं।
टीका.....गुणपर्यायें एक द्रव्यकी ही पर्याय हैं, क्योंकि गुणपर्यायोंको एकद्रव्यत्व है, उनका एक द्रव्यत्व पाम्रफलकी तरह है । जैसे--स्वयं ही हरित भावसे पीतभावरूप परिणमित होता हुआ, प्रथम और पश्चात् प्रवर्तमान हरितभाव और पीतभावके पूर्वोत्तर गुणपर्यायों
MAITH7"m -