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सहजानन्दशास्त्रमालायां
सह स्वरूपभेदमुपत्र जति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते । तथा तदेव द्रव्यमप्युत्तरावस्थ योत्पद्यमानं प्राक्तनावस्थया व्ययमानं तेन व्ययेन लक्ष्यते । न च तेन सह स्वरूपभेदम्पन्न जति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते । यथैव च तदेवोत्तरीयमेककालमलावस्थयोत्पद्यमानं मलि. नावस्थ या व्ययमानमवस्थायिन्योत्तरीयत्वावस्थ या ध्रौव्यमालम्बमानं ध्रौव्येण लक्ष्यते । न च तेन सह स्वरूप भेदमुपद्रजत्ति, स्वरूपत एक तथाविधत्वभवलम्बते । तथैव तदेव द्रव्यमप्येककालमुत्तरादस्थ योत्पद्यमानं प्राक्तनावस्थया व्ययमानमवस्थायिन्या द्रव्यत्वावस्थया ध्रौव्यमालम्बमानं ध्रौव्यण लक्ष्यते न च तेन सह स्वरूपभेदभुपनजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते । यर्थव येन सः अपरित्यक्तस्वभावः तेन (उत्पादः व्ययः अवत्वं चेति उत्पादध्ययध्रवत्वानि तैः संबद्धं इति उत्पादप्राप्त की है ऐसा द्रध्य भी उचित बहिरंग साधनोंके सान्निध्यके सद्भावमें विचित्र नाना स्वरूप के कर्ता व करमाके सामथ्र्य रूप स्वभावसे अनुगृहीत होता हुआ, उत्तर अवस्थारूपसे उत्पन्न होता हुग्रा उत्पादसे लक्षित होता है; किन्तु उसका उस उत्पादके साथ स्वरूपभेद नहीं है, स्वरूपसे हो वैसा है। और जैसे वहाँ वस्त्र निर्मल अवस्थारूपसे उत्पन्न होता हुया और मलिन अवस्थारूपसे व्ययको प्राप्त होता हुमा उस व्ययसे लक्षित होता है, परन्तु उसका उस ब्ययके साथ स्वरूपभेद नहीं है, स्वरूपसे ही वैसा है उसी प्रकार वही द्रव्य भी उत्तर अवस्था रूपसे उत्पन्न होता हुआ और पूर्व अवस्था रूपसे व्ययको प्राप्त होता हुआ उप व्ययसे लक्षित होता है, परन्तु उसका उस व्ययके साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूपसे हो वैसा है। और जैसे वही वस्त्र एक ही समयमें निर्मल अवस्थारूपसे उत्पन्न होता हुग्रा, मलिन अवस्थारूपसे व्ययको प्राप्त होता हुआ और टिकने वाली वस्त्रत्व अवस्थासे ध्र व रहता हुआ ध्रौव्यसे लक्षित होता है; परन्तु उसका उस ध्रौव्यके साथ स्वरूपभेद नहीं है, स्वरूपसे ही वैसा है; इसी प्रकार वही द्रव्य भी एक ही समय उत्तर अवस्थारूपसे उत्पन्न होता हुग्रा, पूर्व अवस्थारूपसे व्यय होता हुआ, और टिकने वाली द्रव्यत्व अवस्थारूपसे रहता हुमा ध्रौव्यसे लक्षित होता है । किंतु उसका उस ध्रौव्यकै साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूपसे ही वैसा है।
और जैसे वही वस्त्र विस्तारविशेषस्वरूप शुक्लत्यादि गुरगोंसे लक्षित होता है, किन्तु उसका उन गुणोंके साश्च स्वरूपभेद नहीं है, स्वरूपसे हो वह वैसा है; इसी प्रकार वही द्रव्य भी विस्तारविशेषस्वरूप गुणोंसे लक्षित होता है; किन्तु उसका उन गुणोंके साथ स्वरूपभेद नहीं हैं, वह स्वरूपसे ही वैसा है । और जैसे वही वस्त्र प्रायतविशेषस्वरूप पर्यायस्थानीय संतुषोंसे लक्षित होता है, किन्तु उसका उन तंतुओंके साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूपसे हो वैसा है । उसी प्रकार वही द्रव्य भी आयतविशेषस्वरूप पर्यायोंसे लक्षित होता है, परन्तु
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