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प्रवचनसार-सप्तदशाली टीका सादृश्योद्धासिना सदित्यस्य भावनोत्थापितेनैकत्वेन तिरोहितमगि विशेष लक्षण भूतस्य स्वरूपास्तित्वस्यावष्टम्भेनोत्तिष्ठन्नानाल्वमुच्चकास्ति ||७|| तं धर्म । समास-...विविधानि च तानि लक्षणानि चेति विविधलक्षणानि ।। ७ ।। अपने अपने विशेष लक्षणभुत स्वरूपास्तित्वके अवलम्बनसे उत्थित होता अनेकत्व स्पष्ट लया प्रकाशमान रहता है इसी प्रकार सर्व द्रव्योंके विषयमें भी सामान्य लक्षणभूत सादृश्य दर्शक 'सत्' पनेसे उत्थित होते एकत्वसे तिरोहित हुअा भी अपने अपने विशेष लक्षणभूत स्वरूपास्तित्वके अवलम्बनसे उत्थित होता अनेकत्व स्पष्टतया प्रकाशमान रहता है।
प्रसंगविवरण----अनंतरपूर्व गाथामें द्रव्यके स्वरूपास्तित्वका कथन किया गया था। अब इस गोथामें सादृश्यास्तित्वका कथन किया गया है ।
तथ्यप्रकाश-(१) प्रत्येक द्रध्य अपने अपने स्वरूपास्तित्व से युक्त है । (२) समस्त द्रव्योंको यदि सत् सामान्यरूपसे देखा जाय तो एक सादृश्यास्तित्व समझा जाता है। (३) । सादृश्यास्तित्वसे सत् ऐसा कहनेपर समस्त अर्थोका ग्रहण हो जाता है । (४) सत् सामान्य कहनेपर स्वरूपास्तित्व गौण हो जाता है । (५) स्वरूपास्तितब निरखनेपर सादृश्यास्तित्वकी प्रतिष्ठा नहीं रहती।
सिद्धान्त-(१) सत् सामान्यके निरखते में सर्व द्रव्योंमें सत्त्वमात्रका परिचय होता है। (२) स्वरूपास्तित्वके निरखने में द्रव्य अन्य द्रव्योंसे विलक्षण ज्ञात होता है।
दृष्टि---१- सादृश्यनय [२०२] । २- वैलक्षण्यनय [२०३] ।
प्रयोग-सब द्रन्यों में स्वरूपास्तित्वको गौण कर सत् सामान्यकी दृष्टिसे निर्विकल्प होते हुए सहज निज स्वरूपास्तित्वको अनुभवना ॥६७||
अब द्रव्योंसे द्रव्यान्तरके प्रारम्भको और द्रव्यसे सत्ताके प्रर्थान्तरत्वको खण्डित करते । है-[ध्य ] द्रव्य [स्वभाव सिद्ध] स्वभावसे सिद्ध और [सत् इति] 'सत्' है, ऐसा [जिनाः] जिनेन्द्रदेवने तत्त्वतः] यथार्थतः [समाख्यातवन्तः] कहा है; [तथा] इस प्रकार प्रागमतः] प्रागमसे [सिद्ध] सिद्ध तथ्यको [यः] जो [न इच्छति] नहीं मानता [सः] वह [हि] वास्तवमें [परसमयः] परसमय है।
तात्पर्य---द्रव्य सहज सिद्ध व सहज सत् है ऐसा न मानने वाला मिथ्यादृष्टि है।
टोकार्थ-वास्तवमें द्रव्योंसे द्रध्यान्तरोंको उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि सवं द्रव्योंके स्वभावसे सिद्धपना है। और उनका स्वभावसिद्धपना उनके अनादिनिधनत्वसे प्रसिद्ध है; है। क्योंकि अनादिनिधन पदार्थ साधनान्तरको अपेक्षा नहीं रखता । वह गुरणपर्यायात्मक अपने
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