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प्रवचनसार-राप्तदशाङ्गी टीका इदं तु साहश्यास्तित्वाभिवालमस्तीति कथयति
इह विविहलक्खणाणं लक्खणमेगं सदिति सबगयं । उवदिसदा खलु धम्म जिणवरवसहेण पणात्तं ॥६७।। यह विविध लक्षरणोंका, लक्षण सामान्य सत्व व्यापक है ।
धर्म उपदेश कर्ता, जिनवर प्रभुने कहा है यों ।। ६७ ॥ इह विविधलक्षणानां लक्षणमेकं सदिति सर्वगतम् । उपदिशता खलु धर्म जिन वरवृषभेण प्रज्ञप्तम् ।। १७ ।।
इह किल प्रपश्चितवैचित्र्येण द्रव्यान्तरेभ्यो व्यावृत्य वृत्तेन प्रतिद्रव्यं सीमानमासूत्रयता विशेषलक्षणभूतेन च स्वरूपास्तित्वेन लक्ष्यमाणानामपि सर्वद्रव्यागामस्तमितवैचित्र्यप्रपञ्चे
नामसंज्ञ...इह विविहलक्खाण लकडण एग रात् इति सत्वगय उदिरांत खलु धम्म जिणवरवसह पपणत्त । धातुसंज्ञ--लक्ख अंकने, पन्या अवबोधने । प्रातिपदिक-इह विविधलक्षण लक्षण एक सत् इति अब इस गाथामें स्वरूपास्तित्वका कथन किया गया है।
__ तथ्यप्रकाश-(१) अस्तित्व द्रव्यका स्वभाव है । (२) अस्तित्व स्वयंसिद्ध होता है, उसमें अन्य साधनको अपेक्षा नहीं होती। (३) अन्यसाधननिरपेक्ष होनेसे अस्तित्व अनादि अनन्त अहेतुक एकरूप वृत्तिसे नित्य प्रवृत्त रहता है । (४) अस्तित्व भाबसे भाववान द्रव्य लक्षित होता है, किन्तु प्रदेशभेद न होनेसे अस्तित्व द्रव्यके साथ एकत्वको प्राप्त हुआ द्रव्यका स्वभाव ही है । (५) जैसे प्रत्येक द्रव्योंमें भिन्न-भिन्न अस्तित्व है इस प्रकार गुण पर्यायोंके साथ भिन्न-भिन्न अस्तित्व नहीं, क्योंकि द्रव्यगुणपर्यायात्मक है। (६) द्रध्यसे पृथक् न पाये जाने वाले गुण पर्यायोंके परिचय द्वारा जो अस्तित्व जाना जाता है वह द्रव्यका स्वभाव है।
सिद्धान्त --(१) गुणपर्यायवत्त्वके परिचयसे चैकालिक द्रव्यका परिचय होता है । दृष्टि-१- अन्वय द्रव्याथिकनय [२७] 1
प्रयोग-प्रात्मगुणपर्यायों से अपने प्रात्माका परिचय करके गुणपर्यायभेदसे परे अखण्ड चैतन्यात्मक अस्तित्व का अनुभव करना ।। ६६ ॥
अब यह सादृश्य-अस्तित्वका कथन है--[खल वास्तव में [धर्म] धर्मका [उपदिशता] उपदेश करते हुये [जिनवरवृषभेण] जिनवरवृषभके द्वारा [इह] इस विश्वमें [विविधलक्षणानां] विविध लक्षण वाले द्रव्योंका [सत् इति] 'सत्' ऐसा [सर्वगतं] सबमें पाया जाने वाला लक्षणं] लक्षण [एक] एक सादृश्यास्तित्व [प्रज्ञप्तम्] कहा गया है ।
तात्पर्य-धर्मका उपदेश करते हुये जिनवरवृषभ द्वारा विविध लक्षण वाले द्रव्योंका सबमें पाया जाने वाला लक्षण सादृश्यास्तित्व कहा गया है।
PARANGBAR