________________
१८४
सहजानन्दशास्त्रमालायां
निमञ्जति तत्प्रत्यया प्रतीतिनिमञ्जति । तस्यां निमञ्जत्यामयुतसिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वं निमजति । ततः समस्तमपि द्रव्यमेवैकं भूत्वावतिष्ठते 1 यदा तु भेद उन्मञ्जति तस्मिन्नुन्मञ्जति तत्प्रत्यया प्रतीतिरुन्मञ्जति । तस्यामुन्मञ्जत्यामयुत सिद्धत्वोत्थमर्थान्तरत्वमुन्मञ्जति । तदापि तत्पयत्वेनोन्मञ्जञ्जलराशेर्जलकल्लोल इत्र द्रव्यान्न व्यतिरिक्तं स्यात् । एवं सति स्वयमेव सद्द्रव्यं भवति । यस्त्वेवं नेच्छति स खलु परसमय एव द्रष्टव्यः ॥६८
ति-वर्तमान अन्य पुरुष एकवचन किया। जो यः सो सः - प्र० एक० । परसमओ परसमय:- प्र० एक० ] निरुवित्त--द्रवति द्रोप्यति अदुद्रुवत् पर्यायान् इति द्रव्यं । समास-स्वभावेन सिद्ध ं स्वभावसिद्ध ं ॥ १८ ॥ अब इस गाथामें बताया गया है कि न तो किसी द्रव्यके द्वारा अन्य द्रव्यका आरम्भ किया जा सकता है और न द्रव्यकी सत्ता उस द्रव्यसे भिन्न होती है ।
तथ्य प्रकाश - ( १ ) समस्त द्रव्य स्वभावसे सिद्ध हैं अतः किसी भी द्रव्यकी सत्ता अन्य द्रव्यसे नहीं होती । ( २ ) समस्त द्रव्य अनादिनिधन होनेसे स्वभावसिद्ध हैं । ( ३ ) अनादिनिधन तत्व अन्य साधनको अपेक्षा नहीं करता । ( ४ ) द्रव्यके द्वारा जो प्रारम्भ होता है वह पर्याय है । (५) द्रव्य और सत्त्व भिन्न नहीं है फिर सत्त्व के समवायसे द्रव्य सत् होता है इस कल्पनाका परिश्रम करना व्यर्थ है । (६) द्रव्य और सत्तामें प्रादेशिक भेद नहीं है कि द्रव्यके प्रदेश अलग हो और सत्वके प्रदेश अलग हों। (७) द्रव्य और सत्त्वमें मात्र प्रताद्भाविक भेद है, क्योंकि तद्भाव समझे बिना भाव व भाववानको समझ नहीं बन सकती । (८) पर्यायदृष्टि से द्रव्य और सत्त्वमें अतद्भावका भेद जगता है । (६) द्रव्यदृष्टिसे द्रव्य के देखने पर सद्भाव भेद भी विलीन हो जाता है । (१०) द्रव्य स्वयं ही सत् है ऐसा न मानने वाले जीव परसमय कहलाते हैं ।
सिद्धान्त --- ( १ ) द्रव्य प्रभेद स्वयमेव सत् है ।
दृष्टि - १ भेदकल्पनानिरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिकनय ( २३ ) |
प्रयोग — स्वद्रव्यको अन्य सब द्रव्योंसे विविक्त व अपने स्वरूपमात्र निरखना ॥८
अब उत्पाद-व्यय-श्रीन्यात्मक होनेपर भी 'सत् द्रव्य है' यह बतलाते हैं- [ स्वभावे ] स्वभाव में [अवस्थित ] अवस्थित [ द्रव्यं ] द्रव्य [सत्] 'सत्' है [हि] वास्तव में [ द्रव्यस्य ] tarai [यः ] जो [ स्थिति संभवनाशसंबद्धः ] उत्पादव्ययधीव्यसहित [ परिणामः ] परिणाम है [ : ] वह [ श्रर्थेषु स्वभावः ] पदार्थोंका स्वभाव है ।
तात्पर्य -- द्रव्य स्वभाव में अवस्थित है और उत्पादव्ययघ्रोव्ययुक्त है ।
टीकार्थ-यहाँ स्वभावमें नित्य अवस्थित होनेसे सत् यह द्रव्य है । स्वभाव द्रव्यका