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सहजानन्दशास्त्रमालायां
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यत्र वर्तमानपूर्वोत्तरावस्थावतीर्णतारतम्योपदर्शितस्वभावविशेषानेकत्वापत्तिगु णात्मको विभावपर्यायः, तथैव व समस्तेष्वपि द्रव्येषु रूपादीनां ज्ञानादीनां वा स्वपरप्रत्ययप्रवर्तमानपूर्वोतरावस्थावतीर्णतारतम्योपदर्शितस्वभावविशेषानेकत्वापत्तिर्गुणात्मकोविभावपर्यायः । इयं हि सर्वपदार्थानां द्रव्यगुणपर्यायस्वभावप्रकाशिका पारमेश्वरी व्यवस्था साधीयसी, न पुनरितरा । यतो हि बहवोऽपि पर्यायभात्रमेवावलम्ब्य तत्त्वाप्रतिपत्तिलक्षणं मोहमुपगच्छन्तः परसमया भवन्ति ॥ २३ ॥
समयः द्रव्येण नित्र सः द्रव्यमयः । समास गुणाः आत्मकाः येषां तानि गुणात्मकानि संययिषु मूढाः पर्यायमूढाः ॥ ६३ ॥
प्रसंगविवरण- प्रारम्भसे श्रनन्तरपूर्व ज्ञेयतरवका प्रज्ञापन किया जा रहा है, जिसमें का स्वरूप कहा गया है ।
तथ्यप्रकाश - ( १ ) जो कुछ जाना गया वह सब अर्थ कहलाता है । ( २ ) अर्थ द्रव्यमय होता है । ( ३ ) द्रव्यविस्तार सामान्य (गुण) और श्रायत ( पर्याय) सामान्यरूप समुदायात्मक है । (३) द्रव्य स्वाश्रित विस्तारविशेषात्मावोंसे अर्थात् गुणोंसे रचा गया होनेसे गुणात्मक हैं । ( ४ ) पर्यायें प्रतिसमय एक एक होकर त्रिकाल होते रहने से प्रायतविशेषात्मक कहलाती हैं । ( ५ ) जो प्रायतविशेषात्मक पर्यायें द्रव्यों द्वारा अर्थात प्रदेशों के प्राकाररूपसे रचित हैं वे द्रव्यव्यञ्जन पर्यायें हैं । ( ६ ) जो प्रायतविशेषात्मक पर्यायें गुणोंसे रचित हैं वे गुराव्यञ्जन पर्यायें हैं । ( ७ ) जो द्रव्यव्यञ्जन पर्याय केवल एक द्रव्यके प्रदेशोंके प्राकारमें है वह स्वभावद्रव्यव्यञ्जनपर्याय है । (८) जो द्रव्यव्यञ्जनपर्याय अनेक बद्ध द्रव्योंके प्रदेशोंके आकारमें है वह या तो समानजातीय द्रव्यव्यञ्जनपर्याय है या असमानजातीय द्रव्यव्यञ्जन पर्याय है । ( ६ ) समानजातिके अनेक द्रव्योंके संश्लेषमें होने वाला आकारपरिणमन समानजातीय द्रव्यaarर्याय है जैसे ये दृश्यमान पुद्गल स्कंध । (१०) श्रसमान जातिके अनेक द्रव्योंके संश्लेष में होने वाला प्राकारपरिणाम प्रसमानजातीय द्रव्यव्यञ्जनपर्याय है, जैसे मनुष्य पशु प्रादि । (११) गुणपर्याय प्रतिसमय अन्य अन्य होता है । (१२) गुणपर्याय दो प्रकारके होते हैं(१) स्वभाव गुण पर्याय, (२) विभाव गुण पर्याय । (१३) स्वभावगुणपर्याय स्वभाव के अनु रूप विकासका नाम है, इसकी अर्थपर्यायसे समानता होने से यहाँ अगुरुलघु गुण द्वारा प्रतिसमय उदित षट्स्थानपतित वृद्धि हानिरूप नानापनकी अनुभूति है, फिर भी विकासकार्य समान है जैसे अदन्त ज्ञान यादि । ( १४ ) विभावगुणपर्याय श्रनुरूपदशावान परपदार्थका
गाथा तक ज्ञानतत्वका प्रज्ञापन किया। अब प्रथम ही समीचीन प्रकारसे द्रव्य गुरण पर्याय