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सहजानंदशास्त्रमालायां
पर्यायसुस्थितं भगवंतमात्मनः स्वभावं सकलविद्यानामेकमूलमुपगम्य यथोदितात्मस्वभावसंभाव नसमर्थतया पर्यायमात्रासक्तिमत्यस्यात्मनः स्वभाव एव स्थितिमासूत्रयन्ति ते खलु सहजबिजू - म्भिताने कान्तदृष्टिप्रक्षपित समस्त कान्त दृष्टिपरिग्र ग्रहा मनुष्यादिमतिषु तद्विग्रहेषु चाविहिताहङ्कारममकार अनेकापवरक संचारित रत्नप्रदीपमिवैकरूपमेवात्मानमुपलभमाना अविचलितचेतनावितत् स्ववसमय ज्ञातव्य । मूलधातु -ज्ञा अथबोधने । उभयपदविवरण जे ये गिरदा निरताः जीवा जीवाः परमयिंग परसमयिकाः ते सगरामया स्वकसमयाः प्रथमा बहु० । पज्जयेसु पर्यायेषु सप्तमी बहु० । जाद
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आत्मस्वभावमें स्थित हैं [ते] वे [स्वकसमयाः ज्ञातव्याः ] स्वसमय ज्ञातव्य है ।
हैं ।
तात्पर्य - पर्यायोंमें लोन जीव परसमय हैं और आत्मस्वभाव में स्थित जीव स्वसमय
टीकार्थ- वास्तव में जो सकल विद्यायोंकी एक जड़ है जीवपुद्गलात्मक समानजातीय द्रव्यपर्याय, उसका श्राश्रय करते हुए यथोक्त आत्मस्वभावकी संभावना करनेमें 'नपुंसक होनेसे उसीमें प्रासक्तिको धारण करते हैं वे निरर्गल एकान्तदृष्टि उछलती है जिनके ऐसे वे 'यह मैं मनुष्य ही हूं, मेरा ही यह मनुष्य शरीर है' इस प्रकार अहंकार-ममकारसे उगाये जाते हुये, श्रविचलित चेतनाविलासमात्र आत्मव्यवहारसे च्युत होकर, गोदमें ले डाला है समस्त क्रियाकलापको जिसमें, ऐसे मनुष्यव्यवहारका प्राश्रय करके रागी द्वेषी, होते हुए परद्रव्यरूप कर्म के साथ संगतता के कारण वास्तव में परसमय होते हैं । परन्तु जो असंको द्रव्य गुण पर्यायों सुस्थित व सकल विद्यावोंके मूल भगवान श्रात्मा के स्वभावका आश्रय करके यथोक्त ग्रामस्व भावकी संभावना में समर्थ होनेसे पर्यायमात्रकी श्रासक्तिको दूर करके ग्रात्माके स्वभाव में ही स्थिति करते हैं अर्थात् लीन होते हैं निश्चयसे वे जिन्होंने सहज विकसित अनेकान्तदृष्टिसे समस्त एकान्तदृष्टि परिग्रहके आग्रह नष्ट कर दिये हैं, ऐसे मनुष्यादि गतियोंमें और उन शक्तियोंके शरीरोंमें अहंकार-ममकार न करके अनेक कमरोंमें संचारित रत्नदीपककी तरह एकरूप ही श्रात्माको अनुभव करते हुये, अविचलित चेतनाविलासमात्र आत्मव्यवहारको अंगीकार करके, जिसमें समस्त क्रियाकलापसे भेंट की जाती है ऐसे मनुष्यव्यवहारका श्राश्रय नहीं करते हुये, रागद्वेषका प्राकट्य रुक जानेसे परम उदासीनताका प्रालंबन लेते हुये, समस्त परद्रव्योंकी संगति दूर कर देनेसे मात्र स्वद्रव्य के साथ ही संगतता होनेसे वास्तव में स्वसमय होते हैं । इस कारण स्वसमय हो आत्माका तत्व है ।
प्रसंगविवरण -- श्रनन्तरपूर्व गाथामें द्रव्य गुण पर्याय के स्वरूपकी समीचीन व्यवस्था बताई गई थी। अब इस गाथामें उसी प्रसंगसे सम्बन्धित स्वसमय व परसमयको प्रतिष्ठा की