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प्रवचनसार- -सप्तदद्याङ्गी टीका
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anant भगवद्भिः स्वयमनुभूयोपदशितो निःश्रेयसस्य पारमार्थिकः पन्था इति
मति व्यवस्थापयति
सव्वे विरहंताण विधागा खविदकम्मंसा । fear aatai व्विादा ते रामो तेसिं ॥ ८२ ॥ सब ही धरत प्रभु, इस विधि कर्माश नष्ट करके हो ।
उपदेश नहीं करके, युक्त हुए हैं नमोस्तु उन्हें ॥ ८२ ॥
चान्तस्तेन विधानेन क्षपितकर्माशाः । कृत्वा तथोपदेशं निर्वृतास्ते नमस्तेभ्यः ॥ ८२ ॥ यतः खल्यातीतकालानुभूत्क्रमप्रवृत्तयः समस्ता अपि भगवन्तस्तीर्थंकरा: प्रकारान्तरस्यासंभवादसंभावित द्वैतेनामुनकेन प्रकारेण क्षपणं कर्माशानां स्वयमनुभूय, परमाप्ततया परे
नामसंज्ञ-सन् वित विधाण खविदकम्मंस तथा उवदेश णिव्वाद त णमो त । धातुसंश- खब क्षयकरणे, का करणे । प्रातिपदिक- सर्व अपि अर्हत् तत् विधान क्षपितकर्मा तथा उपदेश तत् नमः तत् । मूलधातु - सेक्ष्य पुकानिर्देशः, डुकृञ् करणे । उभयपदविवरण -- सव्वे सर्वे अर
अब यही एक भगवन्तोंके द्वारा अनुभव करके प्रगट किया हुआ निःश्रेयसका पारमार्थिक पन्थ है - इस प्रकार मतिको व्यवस्थित करते हैं-- [ सर्वे श्रपि च ] सभी [ अर्हन्तः ] महन्त भगवान [तेन विधानेन ] उसो विधिसे [ क्षपित कर्माशा: ते ] कर्माशों को नष्ट कर चुके वे [ तथा ] उसी प्रकारसे [ उपदेशं कृत्वा ] उपदेश करके [ निर्वृताः ] मोक्षको प्राप्त हुए [ नमः तेभ्यः ] उन सबको नमस्कार होश्रो ।
तात्पर्य - शुद्धोपयोग द्वारा घातिया कर्मो का क्षय कर अरहंत होकर मोक्षमार्गका उपदेश कर निर्वाणको प्राप्त हुए उन सबको नमस्कार है ।
टीकार्थ-- चूंकि प्रतीत कालमें क्रमशः हुए समस्त तीर्थंकर भगवान प्रकारान्तरका संभव होनेसे जिसमें द्वैत संभव नहीं है, ऐसे इसी एक प्रकारसे कर्माशों का क्षय स्वयं होकर परमाप्तता के कारण भविष्यकाल में अथवा इस (वर्तमान) काल में अन्य मुमुक्षुत्रों को भी इसी प्रकारसे कर्मक्षयका उपदेश देकर मोक्षको प्राप्त हुए हैं; इस कारण निर्वारणका अन्य कोई मार्ग नहीं है, यह निश्चित होता है अथवा अधिक प्रलापसे क्या ? मेरी मति व्यवस्थित हो गई है, भगवन्तोंको नमस्कार हो ।
प्रसङ्गविवरण --- अनंतर पूर्व गाथा में बताया गया था कि श्रात्मतत्वकी उपलब्धि होनेपर रागद्वेषको निर्मूल कर देनेसे परिपूर्ण शुद्धात्माका अनुभव होता है । अब इस गाथा में उसी विधानका सभक्ति समर्थन किया गया है |