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सहजानन्दशास्त्रमालायां
यथा हि सुवर्ण पीततादीन गुणान् कुण्डलादीश्च पर्यायानिति तैरर्यमाणं वा अर्थो द्रव्यस्थानीयं, यथा च सूवर्णमाश्रयत्वेनेयतितेनाश्रयभूतेनार्यमारणा वा अर्थाः पीततादयो गणाः यथा च सुवर्ण क्रमपरिणामेनेति तेन क्रमपरिणामेनार्यमारणा वा अर्थाः कुण्डलादयः पर्यायाः । एवमन्यत्रापि । यथा चैतेषु सुवर्णपीततादिगणकुण्डलादिपर्यायेषु पीततादिगुण कुण्डलादिपर्यायाणां सुवर्णादपृथग्भावात्सुवर्णमेवात्मा तथा च तेषु द्रव्यगुणपर्यायेषु गुणपर्यायाणां द्रव्यादपृथग्भावाद्रव्यमेवात्मा ॥७॥ सप्तमी बहु० । गुणपज्जयाण गुणपर्यायाणां-षष्ठी बहु० । अप्पा आत्मा दव्व दव्वं उवदेसो उपदेश:-प्रथमा एक० । निरुक्ति---गण्यते ऐभिः ते गणा:, परियति (गच्छति) इति पर्यायाः। समास -(अर्थस्य संज्ञा अर्थसंज्ञा तया अ०, गुणाश्च पर्यायाश्चेति गुणपर्यायास्तेषा) गुणपर्यायाणां ।। ८७ ॥ द्रव्यस्थानीय 'अर्थ' है । जैसे पीलापन इत्यादि गुण सुवर्णको प्राश्रयके रूप में प्राप्त करते हैं अथवा वे प्राश्रयभूत सुवर्णके द्वारा प्राप्त किये जाते हैं इसलिये पीलापन इत्यादि गुरण 'अर्थ' हैं; और जैसे कुण्डल इत्यादि पर्यायें सुवर्णको क्रमपरिणामसे प्राप्त करती हैं अथवा वे सुवर्ण के द्वारा क्रमपरिणामसे प्राप्त की जाती हैं, इसलिये कुण्डल इत्यादि पर्याय 'अर्थ' हैं; इसी प्रकार अन्यत्र भी है । और जैसे इन सुवर्ण, पीलापन इत्यादि गुण और कुण्डलादि पर्यायोंमें पीलापन इत्यादि गुणोंका और कुण्डल इत्यादि पर्यायोंका सुवर्णसे अपृथक्त्व होनेका उनका सुवर्ण हो अात्मा है उसी प्रकार उन द्रव्य गुण पर्यायोंमें गुण-पर्यायोंका द्रव्यसे अपृथक्त्व होने से उनका द्रव्य ही प्रात्मा है ।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें शास्त्राध्ययनको मोहक्षयका दूसरा उपाय बताया गया था। अब इस गाथामें बताया गया है कि शास्त्रों में पदार्थोकी व्यवस्था किस प्रकार है ?
तथ्यप्रकाश---(१) द्रव्य, गुण व पर्याय अर्थ कहलाते हैं । (२) अर्यते निश्चीयते इति अर्थः, इस निरुक्तिके अनुसार चूंकि द्रव्य, गुण, पर्याय जाने जाते हैं इस कारण वे अर्थ कहलाते हैं । ( ३ ) द्रव्य गुण पर्यायको अर्थ कहनेपर भी सत् द्रव्य ही हैं, गुण पर्याय उस सद्भूत द्रव्यकी विशेषतायें हैं। (४) गुण व पर्याय ही सीधे नहीं जाने जाते, किन्तु गुण व पर्यायरूपसे द्रव्यके ज्ञात होनेपर गुणका व पर्यायका जानना कहा जाता है । (५) ऋ गती धातुका अर्थ प्राप्ति भी है । 'अर्यते प्राप्यते इति अर्थः' इस निरुक्तिसे जो प्राप्त किया जाय वह अर्थ है, तब (६) जो गुण पर्यायोंको प्राप्त करे वह अर्थ द्रव्य है । (७) प्राश्रयभूत अर्थोके द्वारा जो प्राप्त किया जाय वह अर्थ गरण है । (८) क्रमपरिणामसे द्रव्यके द्वारा जो प्राप्त किया जाय वह पर्याय है । (६) गुण व पर्यायोंका सर्वस्व द्रव्य ही है, क्योंकि गुरण व पर्याय द्रव्यसे पृथक् नहीं हैं। (१०) प्रत्येक द्रव्य अपने गुण पर्यायसे तन्मय है, अन्य अथवा अन्य
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