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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका
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२-ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
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सब मयतत्वप्रज्ञापन, तत्र पदार्थस्य सम्यग्द्रव्यगुरणपर्यायस्वरूपमुपधर्णयति---
अत्थो खलु दब्यमयो दव्वाणि गुणप्यगाणि भणिदाणि । तेहिं पुणो पजाया पजयमूढा हि परसमया ॥६३ ॥
अर्थ द्रव्यमय होता, द्रव्य गुणात्मक व उनसे पर्यायें ।
पर्यायोंके मोही, होते परसमय अज्ञानी ॥६३ ॥ अर्थः खलु द्रव्यमयो द्रव्याणि गुणात्मकानि भगितानि ! तैस्तु पुनः पर्याया: पर्ययमूढा हि परसमयाः ॥१३॥
इह किल यः कश्चन परिच्छिद्यमानः पदार्थः स सर्व एव विस्तारायतसामान्य समुदायासमना द्रव्येणाभिनिर्वृत्तत्वाद्रव्यमयः । द्रव्याणि तु पुनरेकाश्रयविस्तारविशेषात्मकैगुणैरभिनिसवादप्रणात्मकानि । पर्यायास्तु पुन रायतविशेषात्मका उक्तलक्षणव्यैरपि गुणरप्याभिनिवत्तवाददव्यात्मका अपि गुणात्मका अपि । तत्रानेकद्रव्यात्मकंक्यप्रतिपत्तिनिबन्धनो द्रव्यपर्यायः ।
नामसंज्ञ--अस्य खलु दब्बम दच मुणपग भणिद त पुणो पज्जाय पज्जयमुह हि परसमय । धातमग कथने, मुज्झ मोहे । प्रातिपदिक...अर्थ खलु द्रव्यमय द्रव्य गुणात्मक भणित तत् पुनर् पाय
ज्ञेयतत्त्व - प्रज्ञापन - अब ज्ञेयतत्वका प्रज्ञापन प्रारम्भ होता है । वहाँ प्रथम हो पदार्थका यथार्थ द्रव्य गुणयस्वरूप निकटतासे निरखते हैं---[खलु अर्थः] वास्तवमें पदार्थ [द्रव्यमयः] द्रव्यस्वरूप
क्यारिण] द्रव्य [गुणात्मकानि] गुणात्मक [भरिणतानि] कहे गये हैं; [तु पुनः तः मार द्रव्य तथा गुणोंसे [पर्यायाः] पर्याय होती है । [पर्यापमूढाः हि] पर्यायमूढ़ जीव [परसमयाः परसमय अर्थात मिथ्यादृष्टि हैं।
तात्पर्य ---जो पर्यायोंमें मोहित हैं, आत्मबुद्धि करते हैं वे मिथ्यादृष्टि हैं।
टीकार्थ----वास्तवमें इस विश्व में जो कोई जाननेमें आने वाला पदार्थ है वह समस्त Pा विस्तारसामान्यसमुदायात्मक और आयतसामान्यसमुदायात्मक द्रव्यसे रचित होनेसे द्रव्य .
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