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सहजानन्दशास्त्रमालायां मतिक्रम्य देवगुरुयतिपूजादानशीलोपवासप्रीतिलक्षरगं धर्मानुरागमङ्गीकरोति तदेन्द्रियराखस्य साधनीभूतां शुभोपयोगभूमिकामधिरूकोऽभिलप्त ।। ६६ ।। सुशीलए उपवासादियः उपवासादिपु सप्तमो बहु । च एव वा-अाय । दाणगि दान-गनमी एक० | रतो रक्तः सहोवअंगप्पगो भोपयोगात्मकः अपा आत्मा.प्रश्रमा एक निक्ति--परते इति यतिः, उप बसनं उगवाराः । समास (दंबता च यतिस्च गुमश्च देवतातिगुरवः नेपा पूजा का शुभश्चासी जपयोगः शुभोपयोगः शुभोयोग एवं आत्मकः याय ग भोपयोगात्मकः ।। ६६ ।। रूप अशुभोपयोग भूमिकाका उल्लंघन करके, देव-गुरु-यतिकी पूजा, दान, शील और उपवासादिकके प्रीतिस्वरूप धर्मानुरागको अंगीकार करता है तब वह इन्द्रियसुखकी साधनीभूत शुभोपयोगभूमिकाको प्राप्त हुया कहलाता है।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि यह भगवान आत्मा स्वयं सुखस्वभावी है । अद इस गाया इन्द्रियमुखके विचारके प्रसंगमें इन्द्रियसुख के साधनके स्वरूप निर्देश किया है।
तथ्यप्रकाश---१-- द्वेष एवं इन्द्रियविषयोंका अनुराग अशुभोपयोग है । २-- अशुभोपयोगकी भूमिकाका उल्लंघन करनेपर शुभोपयोग होता है । ३- देव यति गुरुकी पूजा, गोल, दान, उपचास में प्रीति आदि धर्मानुराग शूभोपयोग है। ४- शुभोपयोग इन्द्रियमुखका साधन है। ५- इन्द्रियमुख हेय है, इसलिये इन्द्रियसुखके साधन भूत शुभोपयोगकी आवश्यकता न होनी चाहिये, किन्तु शुद्धोपयोग शुभोपयोगपूर्वक ही होता है, अतः शुद्धोपयोगसे पहिले शुभीपयोग होना अनिवारित है। ६- निर्दोष सर्वज्ञ परमात्मा देव हैं। ७-- भेदाभेद रल्लनायके पाराधक व अाराधनाथी भव्य जीवोंको दीक्षा देने वाले साधु गुरु हैं। :- इन्द्रियविजय करके शुद्धात्मस्वरूप में प्रयत्मपरायणा साधु यति कहलाते हैं । -जो अशुभोपयोगको भूमिका को उल्लंघन करके जो धर्मानुराग करता है वह शुभोपयोगी कहलाता है ।
सिद्धान्त-१- इन्द्रियसुखका निमित्त सातादिकर्मप्रकृतिका उदय हैं । २- सातादि कर्मप्रकृतियोंके बन्धका निमित्त शुभोपयोग है । ३- इन्द्रियसुखका साधन शुभोपयोग है।
दृष्टि-----१, २- निमित्तदृष्टि [५३] । ३- निमित्तपरम्परादृष्टि [५३ब] ।
प्रयोग-शाश्वत ग्रानन्दके लाभ के लिये अशुभोपयोगभूमिकाका उल्लंघन न कर शुभोपयोगभूमिकामें आकर शुद्धोपयोगके लक्ष्य में बढ़ कर दोनों प्रशुद्धोपयोगरी निवृत्त होकर शुद्धोपयोगरूप परिणमन के लिये सहज परमविश्राम करना ॥६६॥
अब शुभोपयोगके साध्यपनेसे इन्द्रियमुखको कहते हैं--- [शुभेन युक्तः] शुभीपयोग युक्त [मात्मा] अात्मा [तियंक वा] तिथंच [मानुषः वा] मनुष्य [देवः वा] अथवा देव [भूतः] होकर [तावत्काल] उतने समय तक [विविधं] विविध [ऐन्द्रियं सुखं] इन्द्रियसुखको