________________
m
११४
सहजानंदशास्त्रमालाया विषयेषु रतिरुपजायते । ततो न्याधिस्थानीयत्वादिन्द्रियाणां अयाधिसाम्यसमत्वाविषयागो च न प्रस्थानों पारमार्थिक सौख्यम् ।। ६३ ॥ विसएस विषयेषु रमेसु रम्येष-तभी बह । निरुक्ति--सनोः जातः मनुज सरति इति सुरः । समास -- (मनुजाश्य अनुरास्त अमराश्य मनुजारामा इन्द्रा: मनासुरामरेन्या: ।। ६३ ।। माथिक है।
तथ्यप्रकाश -- (१) इन संसारी प्राणियोंके प्रत्यक्ष ज्ञान नही है । (२) प्रत्यक्षज्ञान न. होनेसे में प्राणी परोक्षज्ञान में ही रेंगते रहते हैं । (३) परोक्षजानसे चिपटने वालों के परोक्षज्ञान के साधनीभूत इन्द्रियों में मित्रता प्रकृत्या ही हो जाती है । (४) इन्द्रियों में मंत्री को प्राप्त, महामोहकालाग्नि से ग्रस्त तृष्णपाल इन प्राणियों को इन्द्रियोंके रम्य विषयों में अनुरक्ति हो जाती है। (५) ये इन्द्रियवृत्तियाँ रोगके समान है। (६) वे इन्द्रियविषयसेवन रोगमें थोड़ा पाराम जैसा अनुभव कराने वाले उपचार के समान हैं । (७) विषयसेवनमें क्षोभव्याप्त पाल्पित सुत्र होनेसे वह इन्द्रियसुख सुखाभास है । (८) परोक्षज्ञानियोंका इन्द्रियसुख पारमार्थिक तत्त्व नहीं है । (६) इन्द्रियानुरागी छदास्थ प्राणियोंके पारमार्थिक सुख होता ही नहीं है । (१०) चक्क. वती देबेन्द्र जैसे पुण्यवान जीव भी इन्द्रियविधयपीडाके दुःखको सहन न करते हुए कल्पनामात्र रम्य विषयों में रमते हैं।
सिद्धान्त---(१) विषयवासनासंर कारवशक्ती परीक्षजानीका इन्द्रियमुख अपारमार्थिक है । (२) अशुद्ध मोहग्रस्त जीवका खोटे विकल्पोंमें रमण होता है। (३) विषयवासनापीडित जीव इष्ट रम्य स्पर्शादि विषयोंमें रमता है।
दृष्टि-...१ - अस्वभावनय [१८०] । २- अशुद्धनिश्चय नय [४] । ३- प्राश्रये नाथको उपचारक व्यवहार [१५.१] ।
प्रयोग - इन्द्रियज्ञानको प्रेरगावोंको अहितकर जानकर इन्द्रियविषयों में रमा न भार अतीन्द्रिय अविकार सहज ज्ञानस्वरूपमें मग्न होनेका पौरुष करना ।।६।।
अब जब तक इन्द्रियों हैं जब तक स्वभावसे हो दुःख है, यह युक्तियोंसे निश्चित करते हैं—येषां] जिनके [विषयेषु रतिः विषयों में रति है तेषां] उनके [दुःखं दुःख [स्वाभावं] प्राकृतिक [विजानीहि] जानो, [हि] क्योंकि [यदि] यदि [तद) वह दुःख [स्वाभावं न] प्राकृतिक न हो तो [विषयार्थ] विषयों के अर्थ [व्यापारः व्यापार [न अस्ति नहीं हो
i
rmiiwwwmawaanawarimmswinitiatimsammaankrantikairmiri--mite
......
सकता
तात्पर्य-विषयोमे राग होनेसे दुःख होना स्वाभाविक हो है ।
camerammar