________________
८२
सहजानन्दशास्त्रमालायां
क्षयोपशमावस्थावस्थितज्ञानावरणीय कर्मपुद्गलानामत्यन्ताभावात्तात्कालिक मतात्कालिकं वाप्यर्थजातं तुल्यकालमेव प्रकाशेत । सर्वतो विशुद्धस्य प्रतिनियत देशविशुद्धेरन्तः प्लवनात् समन्ततोऽपि प्रकाशत | सर्वावर रक्षयाद शावर क्षयोपशमस्यानवस्थानात्सर्वमपि प्रकाशत। सर्वप्रकारणानावरणीय क्षयादसर्व प्रकारज्ञानावरणीय क्षयोपशमस्य विलयनाद्विचित्रमपि प्रकाशेत । श्रसमानजातीयज्ञानावरणक्षयात्समानजातीयज्ञानावरणीय क्षयोपशमस्य विनाशनाद्विषममणि प्रकाशत | यत्तक्कालिक तत्कालिक इदर इतर सर्व्वं सर्व अत्य अर्थ विचित्रविमं विचित्रविषम-द्वितीया एक जुग युगपत् -- अव्यय । जाणदि जानाति वर्तमान अन्य० एक० क्रिया । तं तत् णाणं ज्ञान खाइगं क्षायिकप्रकाशित करता है । सर्वतः विशुद्ध क्षायिक ज्ञान प्रतिनियत प्रदेशोंको विशुद्धिका सर्वविशुद्धि के भीतर डूब जानेसे अर्थसमूहको सर्व ग्रात्मप्रदेशोंसे प्रकाशित करता है । सर्व आवरणोंका क्षय होनेसे, देश श्रावरणका क्षयोपशम न रहने से वह सबको भी प्रकाशित करता है । सर्व प्रकार ज्ञानावरण के क्षयके कारण असर्वप्रकारके ज्ञानावरणका क्षयोपशम विलयको प्राप्त होनेसे वह विचित्र अर्थात् अनेक प्रकारके पदार्थों को भी प्रकाशित करता है । समानजातीयज्ञानावराके क्षय के कारण समानजातीयज्ञानावरणका क्षयोपशम नष्ट हो जानेसे वह विषम अर्थात् श्रसमानजातिके पदार्थोंको भी प्रकाशित करता है । श्रथवा प्रतिविस्तारसे कुछ लाभ नहीं, जिसका श्रनिवारित फैलाब है, ऐसा प्रकाशमान होनेसे क्षायिक ज्ञान श्रवश्यमेव सर्वदा, सर्वत्र, सर्वथा सर्वको जानता हो है ।
प्रसंगविवरण- प्रनंतरपूर्व गाथामें बताया गया था कि केवलो भगवानको तरह सभी संसारी जीवोंके स्वभावविघातका प्रभाव हो ऐसा नहीं है । अब इस गाथामें केवली भगवान के प्रकरण के अनुसार ही प्रभुके अतीन्द्रिय ज्ञानको सर्वज्ञपनेके रूपसे अभिनंदित किया है ।
तथ्य प्रकाश -- ( १ ) ज्ञानावरणकर्मका पूर्ण क्षय हो जानेसे क्षायिक ज्ञान तीनों काल की वृत्ति वाले सब पदार्थोंको जान लेता है । ( २ ) ज्ञानावरणकर्मका क्षय होनेसे ज्ञानावरण कर्मकी क्षयोपशम अवस्थाका प्रसंग ही नहीं, प्रत। क्षायिक ज्ञान क्रम क्रमसे पदार्थों को नहीं जानता, किन्तु एक ही समय में सबको जानता है । ( ३ ) पूर्ण निर्विकार होनेके कारण द्रव्येन्द्रियके प्रदेशोंसे ही जाननेका प्रसंग ही नहीं, अतः क्षायिक ज्ञान समस्त आत्मप्रदेशोंसे जानता है । ( ४ ) सर्वार्थज्ञानावरणका क्षय होनेसे क्षायिक ज्ञान सबको ही जानता है । (५) सर्व प्रकार के ज्ञान के प्रावरणका क्षय हो जानेसे सर्व प्रकारके पदार्थोंको अर्थात् विचित्र विचित्र भी सब पदार्थोंको क्षायिक ज्ञान जानता है । (६) विभिन्न - विभिन्न जातिके पदार्थोंके ज्ञानके ग्रावरण का क्षय हो जानेसे क्षायिक ज्ञान विषम विभिन्न विभिन्न जातिके पदार्थोंको जानता है ।