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प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका मद्रव्यपर्यायान् प्रत्यक्षीकुर्यात् । एवमेतदायाति य प्रात्मानं न जानाति स सर्व न जानाति । प्रय सर्वज्ञानादात्मज्ञानमात्मज्ञानात्सर्वज्ञान मित्यवतिष्ठते । एवं च सति ज्ञानमयत्वेन स्वसंचेतकवादात्मनो ज्ञातृज्ञ ययोर्वस्तुत्वेनान्यत्वे सत्यपि प्रतिभासप्रतिभासमानयोः स्वस्यामवस्थायामन्यो
यसवलतैनात्यन्त मशक्यविवेचनत्वात्सर्वमात्मनि निखातमिव प्रतिभाति । यद्येवं न स्यात् तदा - शानस्य परिपूर्णात्मसंचेतनाभावात् परिपूर्णस्यकस्यात्मनोऽपि ज्ञाने न सिद्धयत् ॥ ४६ ।। Poar बजादाणि अनन्तानि द्रव्यजातानि-द्वितीया बहु० । ण न जाँद यदि किध वाथं जगवं युगा
अध्ययः । विजाणदि विजानाति जाणादि जानाति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । सो मा. TA | सवाणि सर्वाणि-द्वितीया बहु० । निरुक्ति द्रवति पर्यायान् इति द्रव्यं । समास-न अन्तः परय म् अनन्तम द्रियाणां जातानि द्रव्यजातानि ४६॥ जानता । अब यह निश्चित हुप्रा कि सर्वके ज्ञान से प्रात्माका ज्ञान और प्रात्माके ज्ञानसे सर्व का ज्ञान होता है और ऐसा होनेपर अत्मा ज्ञानमयताके कारण स्वसंचेतक होनेसे, शाता और मन थका वस्तुरूपसे अन्यत्व होनेपर भी प्रतिभास और प्रतिभासमान इन दोनोंका स्व अवस्था में प्रन्योन्य मिलन होने के कारण उनका भेद करना अत्यन्त अशक्य होनेसे सब पदार्थसमक्ष ग्राम में प्रविष्ट हो गयेकी तरह प्रतिभासित होता है, यदि ऐसा न हो तो, अर्थात् यदि प्रात्मा
को न जानता हो तो ज्ञानके परिपूर्ण प्रात्मसंचेतनका प्रभाव होनेसे परिपूर्ण एक मात्माका भी ज्ञान सिद्ध न होगा।
प्रसंगविवरण..अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि सबको न जानने वाला Elim प्रारमा एकाको भी पूर्णरीत्या नहीं जानता है। अब इस गाथामें बताया गया है कि एकको गारीत्या न जानने वाला आत्मा सबको नहीं जानता।
तथ्यप्रकाश-(१) प्रात्मा स्वयं ज्ञानमय है, जाता है, ज्ञान ही है । (२) वह ज्ञान सामान्यदृष्टि से प्रात्मगत प्रतिभासमय महासामान्यरूप है । (३) वह ज्ञान विशेषदृष्टि से अनन्त नविशेषोंमें (अर्थों में) व्यापने वाला अर्थात् अनन्त पदार्थोको जानने वाला प्रतिभासमय है । (४) अनन्त सर्व पदार्थोके जानने वाले ज्ञान के विषयरूप निमित्त सर्व द्रव्य पर्याय हैं। (५) सर्व दत्य पर्यायोंके निमित्तसे अनन्तविशेषों में व्यापने वाले प्रतिभासमय महासामान्यरूप अपने मात्माको स्वानुभव प्रत्यक्ष करनेके मायने सबका जानना कहते हैं 1 (६) जो सर्वार्थव्यापी प्रतिभासमय महासामान्यरूप एक निज प्रात्माको नहीं जान पाता वह सर्व अर्थोंको कैसे जान सकता है ? (७) सर्वके ज्ञानसे प्रात्माका ज्ञान होता, प्रात्माके ज्ञान से सर्वका ज्ञान होता । E) प्रतिभासप्रतिभासमानपनेके नातेसे सर्व पदार्थ प्रात्मामें जड़े हुएसे विदित होते हैं।(8) अयना ज्ञान और सबका ज्ञान एक साथ ही होता है। (१०) परिपुर्ण स्वयंका ज्ञान न हो
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