________________
सहजानन्दशास्त्रमालायां
अथ ज्ञानादमिन्नस्य सौख्यस्य स्वरूप प्रपञ्चयन ज्ञानसौख्ययोः हेयोपादेयत्वं चिन्तयति ---
अस्थि अमुत्तं मुत्तं अदिदियं इंदियं च अत्थसु । णाग च तहा सोक्खं जं तेसु परं च तं गणेयं ॥५३॥ अर्थोका ज्ञान व सुख, भूतं अमूर्त इन्द्रियज प्रतीन्द्रिय ।
हो जो इन में उत्तम, वही उपादेय है मानो ॥ ५३ ॥ अन्त्यमूर्त मुमतीन्द्रियमंन्द्रियं चायपु । ज्ञानं च तथा सौख्यं यत्तेषु परं च तत् अयम् ॥ ५३ ।।
प्रत्र ज्ञानं सौख्यं च मूर्तेमिन्द्रियजं चैकमस्ति । इतरदमूर्तमनीन्द्रियं चास्ति । तत्र यद. मूर्तमतीन्द्रियं च तत्प्रधानत्वादुपादेयत्वेन ज्ञातव्यम् । तार्थ भूर्ताभिः क्षायोपशमिकीभिहायोग
नामसंज्ञ....अमुक्त मुत्त अदिदिय इंदिय च अत्थ णाण चहा सोपख जत पर च त रोय । धातुसंज्ञअस मनायां, ना अवबोधने । प्रातिपदिक... अमूर्त मूतं अतीन्द्रिय इन्द्रिय न अर्थ ज्ञान च सौख्य यत् तथा तत् पर ज्ञेय । मूलधातु-अरा भुबि, ज्ञा अवबोधने । उभयपदविवरण... अमुत्तं अमूर्त मुक्तं मूतं अतीन्द्रियं की हेयोपादेयताका चिन्तन करते हैं- [अर्थेषु ज्ञान] पदार्थ सम्बन्धी जान [अमूर्त मूत] अमूर्त, मूर्त [अतीन्द्रियं ऐन्द्रियं च अस्ति] प्रतीन्द्रिय और ऐन्द्रिय होता है; [च तथा सौख्यं] और इसी प्रकार अर्थात् अमूर्त, मतं, अतीन्द्रिय और ऐन्द्रिय सुख होता है । [तेषु च यत् । परं] उनमें जो उत्कृष्ट है [तत् ज्ञेयं] वह उपादेयरूप जानने योग्य है। __तात्पर्य--अमूर्त व अतीन्द्रिय ज्ञान एवं सुख ही उत्कृष्ट और उपादेय है।
टीकार्थ-~~~यहाँ एक तो ज्ञान और सुख मूतं और इन्द्रियज है; और दूसरा ज्ञान तथा । सुख अमूर्त और अतीन्द्रिय है वह प्रधान होनेसे उपादेयरूप जानना । यहाँ पहला ज्ञान तथा सुख अर्थात् मूर्त द इन्द्रियज ज्ञान और सुख मूर्तरूप क्षायोपशमिक उपयोगशक्तियोंमे उस-उस प्रकारकी इन्द्रियोंके द्वारा उत्पन्न होता हुमा पराधीन होनेसे कादाचित्क, क्रमशः प्रवृत्त होने बाला, सप्रतिपक्ष और हानि वृद्धियुक्त है, अत: गौण है, यह समझकर वह हेय है; और दूसरा । ज्ञान तथा सुख अर्थात् अमूर्त अतीन्द्रिय ज्ञान व मुख अमूर्तरूप चैतन्यानुविधायी एकाको आत्मपरिणाम शक्तियोंसे तथाविध अतीन्द्रिय, स्वाभाविक चिदाकारपरिणामोंके द्वारा उत्पन्न होता हमा अत्यन्त आत्माधीन होनेसे निस्य, युगपत् प्रवर्तमान, निःप्रतिपक्ष और हानि वृद्धिरहित है, अतः मुख्य है, यह समझकर वह उपादेय है।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि सर्वज्ञदेवके ज्ञप्तिक्रिया होनेपर भी कर्मबन्ध नहीं होता। अब इस गाथामें ज्ञानसे अभिन्न सौख्यका स्वरूप निर्दिष्ट कर ज्ञान और सौख्यमें कौनसा ज्ञान व सौख्य हेय है और कोनसा ज्ञान ब सौख्य उपादेय है यह बताया
Kammar