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सहजानन्दशास्त्रमालायां
ॐॐ888
अथ ज्ञेयार्थपरिगमनलक्षणा क्रिया ज्ञानान्न भवतीति श्रद्दधाति---
परिणमदि णेयम णादा जदि णेव खाइगं तस्स । णाणं ति तं जिणिंदा खवयंत कम्ममेवुत्ता ॥ ४२ ॥
ज्ञेयार्थों रूप यदि, जो परिणम जाय कोइ ज्ञाता।
उसका ज्ञान न क्षायिक, कर्मक्षपक जिन कहें ऐसा ॥४२॥ परिणमति ज्ञेयमर्थ ज्ञाता यदि नव क्षायिक तस्य । ज्ञानमिति तं जिनेन्द्राः क्षपयन्तं कर्मैयोक्तवन्तः ।। ४२ ।।
परिच्छेत्ता हि यत्परिच्छेद्यमय परिणमति तन्न तस्य सकल कर्मकक्षक्षयप्रवृत्तस्वाभा
नामसंज-–ोय अटु णादार जदि ण एव खाइग त णाण ति त जिणिद खवयंत कम्म एच उत्त। धातुसंज्ञ-परि णम प्रहत्ये, वच्च, व्यक्तायो वाचि । प्रातिपदिक---जेय अर्थ ज्ञातृ यदि न एव क्षायिक तत् ज्ञान इति तत् जिनेन्द्र क्षपयत् कर्म एव उक्तवत् । मूलधातु-परि णम प्रहत्वे, वच परिभाषो । उभयपदविवरण-गेयं ज्ञेयं अट्ठ अर्थ-द्वितीया एक० । परिणमदि परिणति-वर्तमान अन्य एक त्रिया। मादा ज्ञाता-म० एक० । जदि यदि ण न एव ति इति-अव्यय । खाइगं क्षायिक-प्रथमा एकवचन । तरस तस्ययदि [ज्ञेयं अथ] ज्ञेय पदार्थरूप परिणमति] परिणमित होता है तो [तस्य] उसके [क्षायिक ज्ञान] क्षायिक ज्ञान [न एव इति ] होता ही नहीं; इस प्रकार [जिनेन्द्राः] जिनेन्द्रदेवोंने [तं] उसे [कर्म एव] कर्मको ही [क्षपयन्त] अनुभव करने वाला [उक्तवन्तः] कहा है ।
तात्पर्य-~-ज्ञय पदार्थरूप परिणमने वाले जीवको क्षायिक ज्ञान नहीं होता, वह तो बन्ध करने भोगने वाला होता है ।
टोकार्थ-यदि ज्ञाता ज्ञेय पदार्थरूप परिणमित होता हो, तो उसे सकल कर्मकक्षके क्षयसे प्रवर्तमान स्वाभाविक जानपनका कारमाभूत क्षायिक झान नहीं है अथवा उसे ज्ञान ही नहीं है, क्योंकि व्यक्तिश: प्रति पदार्थ पदार्थकी परिणत्तिके द्वारसे मृगतृष्णामें जलसमहकी कल्पना करनेको भावना वाला वह प्रात्मा अत्यन्त दुःसह कर्मभारको ही भोगता हुना है ऐसा जिनेन्द्रदेवोंके द्वारा कहा गया है ।
असंगविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि प्रतीन्द्रिय ज्ञानके सारे ही सब प्रकारके पदार्थ जय हैं । अब इस गाथामें कहा गया है कि ज्ञ यार्थपरिणमनरूप क्रिया ज्ञान से नहीं होती।
तथ्यप्रकाश-(१) बन्धका कारण राग द्वेष मोह है, ज्ञान नहीं। (२) यह लाल है यह हरा है इत्यादि विकल्परूपसे श यार्थके अनुरूप परिणमन है तो वह क्षायिक शान नहीं है । (३) झे यार्थपरिणमनरूप क्रिया तीन रूपोंमें परखी जाती है.---- १- दर्शनमोहसंबंधित, २- दर्शन मोहरहितचारित्रमोहसम्बन्धित, ३- वीतराग क्षायोपशमिक ज्ञान सम्बन्धित । (४)