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सहजानन्दशास्त्रमालायां
अथ कुलस्त ज्ञेयार्थ परिमनलक्षरणा क्रिया तत्फलं च भवतीति विवेचयति उदयगदा कम्मंसा जिवरवसहेहि तेसु विमूढो रत्तो ढुट्टो वा बंधम
संसारी जीवोंके, उदयागत कर्म हैं कहे जिनने ।
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यदिणा भणिया । भवदि ॥ ४३ ॥
उनमें मोही राम, द्वेषी हो बन्ध अनुभवते ॥४३॥
उदयगताः कर्माचा जिना वृषभैः नियत्या भणिताः । तेषु विमूढो रक्तों दुष्टों वा बन्धमनुभवति ।। ४३ ।। संसारिणां हि नियमेन तावदुदयगताः पुद्गलकर्माशाः सन्त्येव । अथ स सत्सु तेषु
नामसंज्ञ उदयगद कम्मंस जिणवरवसह णिर्याद भणिय त विमूढ रत छुट्टु वा बंध धातुसंज्ञअनुभव सत्तायां मुज्भः मूर्च्छायां रज्ज रागे. दुस वैकृत्ये अप्रीती । प्रातिपदिक उदयगत कर्माश जिनवर वृषभ नियत भणित तत् विमुढ रक्त दुष्ट वा बन्ध । मूलधातु - अनु सत्तायां, मुह वैचित्ये, रंज रागेभ्वादि दिवादि, द्विप अप्रीती अदादि वा दुवैकृत्ये दिवादि । उभयपदविवरण -- उदयनदा उदयगताः कम्मंसा कर्माशाः - प्रथमा बहु० । जिणवरसहेहि जिनवरवृषभैः तृतीया बहू । णिर्यादिणा नियत्यातात्पर्य – कर्मके उदयका निमित्त पाकर जीव गोड़ी रागी द्वेषी होता है व ग्रागामी कर्मबन्ध भी करता है ।
टोकार्थ-संसारी जीव के नियमसे उदयगत पुद्गल कर्माश होते ही हैं । और वह संसारी जोव उन उदयगत कर्माशोंके उदित होनेपर संचेतन करता हुग्रा मोह राग द्वेषमें परितपना होनेसे ज्ञयार्थपरिणमनरूप क्रिया के साथ युक्त होता है और इसीलिये क्रिवाके फलभूत बन्धको प्रनुभवता है। इस कारण यह सिद्ध हुआ कि गोहके उदयसे ही क्रिया और क्रियाफल होता है, ज्ञानसे नहीं ।
प्रसंगविवरण - प्रनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि यदि ज्ञाता ज्ञेयार्थरूप परिसमता है याने यदि ज्ञाता के ज्ञयार्थपरिणमनलक्षण क्रिया है तो उसके स्वाभाविक ज्ञान है ही नहीं । अब इस गाथायें बताया गया है वह ज्ञयार्थपरिणमनलक्षण क्रिया क्यों होती है ? तथ्यप्रकाश - ( १ ) य पदार्थों के परिणमनके अनुरूप अपना परिणमन करना ज्ञेयार्थ परिणमन है । ( २ ) अज्ञानियोंका अन्तर्ज्ञेयार्थ मोहकलुषित श्राश्रयभूतनोकर्मानुरूप जोयाकार है । (३) जीव मोहपरिगत होनेसे ज्ञेयार्थपरिणमनक्रिया के साथ युक्त होता है । ( ४ ) ज्ञेयापरिणमन क्रिया ज्ञानके कारण नहीं होती है । (५) ज्ञेयार्थपरिणमन क्रिया मोहभावके कारण होती है । (६) मोहभाव मोहकर्मके उदयका निमित्त पाकर होता है । ( ७ ) क्रमोंके उदयसे कर्मोका बन्ध नहीं है । (८) कर्मोदयन देहादिकी क्रियावोरी भी कर्मोका बन्ध नहीं है । (६) ज्ञयार्थपरिणमनक्रिया के निमित्तसे कर्मोका बन्ध हैं । (१०) मोहनीय कर्मका उदय