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प्रवचनसारः
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संचेतयमानो मोहरामद्वेषपरिणतत्वात् ज्ञयार्थपरिणामान लक्षणया क्रियया युज्यते । तत एव च क्रियाफलभूतं बन्ध मनुभवति । प्रतो मोहोदयात क्रियाक्रियाफले न तु ज्ञानात् ॥४३॥ Hए । भणिदा भगिता:-प्र० बहु० बदन्त क्रिया । तेसु ता-स० वतुः । विमुढो विमूद: रत्तो रक्तः इट्रों दुष्ट:-प्रथमा एकवचन । बंध बन्ध-वि० एक० । अगुभवादि अनुभवति-वर्तमान अत्यः एक क्रिया । निरुक्ति--जयतीति जिनः, बंधनं बंधः । समास-उदय गताः उदय गता जनेषु धरा तेषु वृषभाः तैः ।।४।। रूप परिसमन उन्हीं मोहनीय कर्म प्रकृतियोंमें होता है। (११) मोहनकृतिक उदय में विकृत प्रकृतिमुद्रा उपयोगमें प्रतिफलित होतो है । (१२) संसारी जीव उस प्रतिफलित प्रकृतिमुद्राको अपनी वर्तमान योग्यतानुसार यात्मसात् करता है । (५३) प्रकृति मुद्राको आत्मसात् करते ही जयार्थपरिणमन क्रिया हो जाती है। (१४) वीतराग छद्मस्थोंका शतिपरिवर्तनरूप ज्ञयार्थपरिणमन पूर्व भूत ज्ञानको अस्थिरताके संस्कारवश होता है । (१५) रागद्वेष मोहभाव नैमित्तिक हैं, प्रकृतिविपाकके प्रतिफलन हैं, आकुलतामय हैं, पराश्रयज है, अतः हेय हैं।
सिद्धान्त-(१) उदयगत कर्माशों में मोही रागो द्वेषो जोव बन्धको अनुभवता है। दृष्टि-१- उपाधिसापेक्ष प्रशुद्ध द्रव्याथिकनय [२४] ।
प्रयोग–बंधका कारण कांदिय नहीं, देहादि क्रिया नहीं, किन्तु मोह राग द्वेष भाव है ऐसा जानकर नैमित्तिक विकार भावोंसे उपयोग हटाकर अविकारस्वभावी स्वकीय अन्तस्तत्वमें उपयोग लगाना व रखना ॥४३॥ । अब केवली भगवानके क्रिपा भी क्रियाफलको अर्थात् बन्धको उत्पन्न नहीं करती यह उपदेश करते हैं--[तेषाम् अर्हता] उन अरहन्त भगवन्तोंके [काले] उस समय [स्थाननिषयाविहाराः खड़े रहना, बैठना, विहार होना धर्मोपदेशः च और धर्मोपदेश होना [स्त्रीरण मायाचारः इव] स्त्रियोंके मायाचारको तरह [नियतयः] प्राकृतिक ही याने प्रयत्न बिना ही होता है।
तात्पर्य ----अरहंत प्रभुकी बिहार उपदेश ग्रादि क्रिया रागपूर्वक नहीं, किन्तु प्राकृतिक होती है।
टोकार्थ-वास्तवमें जैसे स्त्रियोंके, प्रयत्नके बिना भी, उस प्रकारको योग्यताका सद्भाव होनेसे स्वभावभूत ही मायाके ढक्कनसे ढका हुमा व्यवहार प्रवर्तता है, उसी प्रकार * फेवली भगवानके, प्रयत्न के बिना हो उस प्रकारकी योग्यताका सद्भाव होनेसे खड़े रहना, की बैठना, विहार होना और धर्मदेशना स्वभावभूत ही प्रवर्तते हैं । और यह सब बादलके दृष्टांत
से अविरुद्ध है। जैसे बादलके प्राकाररूप परिणमित पुद्गलोंका चलना, ठहरना, गरजना और EAR पानी बरसना ये सब पुरुषप्रयत्न के बिना भी देखे जाते हैं, उसी प्रकार केवली भगवानके
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