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SINMENT
प्रवचनयार:
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स्थितानां वर्तमानानां च वस्तुनामाले ल्याकाराः साक्षादेकक्षण एवावभासन्ते, तथा संविद्भित्तावपि । किंछ सर्वज्ञेयाकाराणां तादात्विकत्वाविरोधात् । यथा हि प्रध्वस्तानामनुदिताना न वस्तूनामालेल्याकारा वर्तमाना एव, तथातीलानामनागनानां च पर्यायारणां ज्ञेयाकारा वर्तमान। एद भवन्ति ।। ३७ ॥ पर्यायाः । समास-तस्य कालः तत्कालः तत्र भवाः तात्कालिका द्रव्याणां जातयः द्रव्यशालयः लायां ॥३७॥ (a) ज्ञेय पदार्थोकी प्रमेयत्वशक्ति ऐसी है कि जिससे त्रिलोक त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थ निरावण ज्ञान में ज्ञेय होते ही हैं ।
- सिद्धान्त---(१) निरावरण ज्ञानी प्रात्मामे त्रिलोक त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थ प्रतिविम्बित होते हैं । (२) परमात्मा अपने परिपूर्ण विकसित पर्यायको ही तन्मय होकर जानते
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दृष्टि---१- प्रशून्यनय [१४] । २- मुद्धनिश्चयनय [४६]
प्रयोग---जिसमें ज्ञेय प्रतिभासित हैं ऐसे निज विकासको ही तन्मयतासे जानता हूं ऐसा निश्चय करके बाद्य पदार्थोसे अपना सम्बन्ध न मानकर निर्विकल्प होने का गम सहज पौरुष करना ।। ३७ ।।
अब अविद्यमान पयायोंको कथंचित् विद्यमानता धारण कराते हैं (बतलाते हैंघि पर्यायाः] जो पर्यायें [हि वास्तवमें [संजाताः न एव] उत्पन्न नहीं हुये हैं, नया [ये] जो पायें खितु] वास्तवमें [भूत्वा मष्टाः] उत्पन्न होकर नष्ट हो गये हैं. [ते] वे [असद्भूताः पर्यायाः] अविद्यमान पर्यायें [ज्ञानप्रत्यक्षाः भवन्ति ज्ञान में प्रत्यक्ष होते हैं ।
तात्पर्य-प्रतीत और अनागत पर्याय प्रभुके ज्ञान में स्पष्ट प्रत्यक्ष होते हैं।
टोकार्थ----जो पर्यायें अभी तक भी उत्पन्न नहीं हुये और जो उत्पन्न होकर नष्ट हो गये हैं वे पर्याय वास्तवमें अविद्यमान होनेपर भी ज्ञान के प्रति नियत होनेसे ज्ञान प्रत्यक्षता को अनुभवते यापार स्तम्भमें उत्कीर्ण, भूत और भावी देवोंकी भांति अपने स्वरूपको प्रक.
पतया ज्ञानको अर्पित करते हुये विद्यमान हो है। A प्रसंगविवरण-अनंतरपूर्व गाथा में बताया गया था कि प्रभुके ज्ञान में भूत भविष्यको
पाय भी बर्तमानपर्यायको तरह ज्ञेय हैं। अब इस गाथामें असद्भूत पर्यायों को प्रभुज्ञानमें । सदभूत बना दिया गया है।
तथ्यप्रकाश---.-- प्रतीत व भविष्यत् पर्याय असद्भूत कहलाते हैं, क्योंकि वे वर्तमातमें अभी नहीं हैं । २-- असद्भूत पर्यायें भी भगवान के वर्तमान ज्ञान में विषयभूत हैं, अतः
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