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सहजानन्दशास्त्रमालायां अथात्मनो ज्ञानप्रमाणत्वं ज्ञानस्य सर्वगतत्वं चोद्योतयति
श्रादा गाणपमागां गाणं गोयप्पमाणमुद्दिट्ट। गणेयं लोयालोयं तम्हा गाणं तु सव्वगयं ॥२३॥
प्रात्मा ज्ञानप्रमाण हि, जेंयप्रमाण है ज्ञान बतलाया ।
लोकालोक ज्ञेय है, ज्ञान हुमा सर्वगत इससे ॥ २३ ॥ आत्मा ज्ञानप्रमाणं ज्ञातं जयप्रमाणमुद्दिष्टम् । ज्ञेयं लोकालोकं तस्माज्ज्ञानं तु सवंगतम् ।। २३ ।।
___ यात्मा हि 'समगुणपर्यायं द्रव्यम्' इति वचनात् ज्ञानेन सह हीनाधिकत्वरहितत्वेन परिणतत्वात्तत्परिमाणः, ज्ञानं तु शेयनिष्ठत्वाबाह्यनिष्ठदहनदत्तस्परिमाणं; ज्ञेयं तु लोकालोकविभागविभक्तानन्तपर्यायमालिकालीढस्वरूपसूचिता विच्छेदोपदशितधीच्या षड्द्रध्यो सर्वमिति यावत् । ततो नि:शेषावरणक्षयक्षण एव लोकालोकविभागविभक्तासमस्तवस्त्वाकारपारमुपगम्य तथैवाप्रच्युतत्वेन व्यवस्थितत्वाद् ज्ञानं सर्वगतम् ।।२३।।
नामसंज्ञः--अत्त णाणपमाण णाण शेयप्पमाण उट्टि गोय लोयालोय, त, माण, तु, सव्वगय । धातुसंज- उत् दिस प्रेक्षणो, सा अवबोधने । प्रातिपदिक-...-आत्मन् ज्ञानप्रमाण ज्ञान ज्ञेयप्रमाण उद्दिष्ट ज्ञेय लोकालोकत झान तु सर्वगत । मूलधातु-- ज्ञा अवबोधने, उत् दिश अतिसर्जने । उभयपदविवरण-आदा • आत्मा-प्रथमा ए माणपमाणं ज्ञानप्रमाणं गाणं ज्ञानं शेयप्पमाणं जयप्रमाण-प्र० ए ० । उद्दिष्ट उद्दिष्ट--- प्र० एक० कृदन्त क्रिया। गेयं ज्ञेयं-प्र० एक० कृदन्त निया। लोयालोयं लोकालोक गाणं ज्ञानं सध्वगयं सर्वगत- प्रथमा एक तम्हा तस्मातू...पंचमी एक | निरुक्ति--ज्ञातुं योग्यं ज्ञेयं, लोक्यते द्रव्याणि यत्र स लोकः । समास-लोकश्च अलोकाश्च लोकालोको तयोः समाहारः लोकालोक, सर्वस्मिन् गतं सर्वगतम् ।।२३।। भांति ज्ञेयप्रमाण है । ज्ञेय लोक और अलोकके विभागसे विभक्त अनन्त पर्यायमालासे पालिगित स्वरूपसे सूचित (ज्ञात), विनाया होते रहनेपर भी दिखाया है ध्रौव्य जिसने ऐसा द्रव्य समूह, यही तो सब कहलाता है। इसलिये नि:शेष प्रावरणके क्षयके समय ही लोक और अलोकके विभागसे विभवत समस्त वस्तुओंके अाकारोंके पारको प्राप्त करके उसी प्रकार अच्युत रूपसे व्यवस्थितपना होनेसे ज्ञान सर्वपत है।
प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि प्रतीन्द्रिय ज्ञान होनेसे भगवानके कुछ भी परोक्ष नहीं है । अब इस गाथामें बताया गया है कि ज्ञान सर्वगत है और प्रात्मा ज्ञानप्रमाण है।
तथ्यप्रकाश-(१) द्रव्य अपने गुणपर्याय बराबर है अर्थात् द्रव्य गुरुपर्यायोंसे अभिन्न है । (२) प्रात्मा ज्ञानस्वरूप है सो प्रात्मा ज्ञानप्रमाण है । (३) ज्ञान ज्ञेयाकारके जाननस्व. · रूप ही तो है सो ज्ञान ज्ञेयप्रमाण है जैसे कि अग्नि जल रही चीजके बराबर है। (४) ज्ञेय