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। दफा २८-३०]
हिन्दूलों के स्कूलोंका वर्णन
मिस्टर मुल्ला, द्रविड़ स्कूलको मदरास स्कूलके सिर्फ नामभेद कहते हैं इस स्कूलमें स्मृतिचन्द्रिका, पराशरमाधव और बीरमित्रोदय प्रधानता से माने गये हैं। जहांपर इन तीनों ग्रन्थोंसे दूसरे ग्रन्थ विरुद्ध हों वहांपर इन्हीं प्रन्थों की बात मानी जायगी। खास द्रविड़ वह है जहां तामिल भाषा बोली जाती है, तथा कर्नाटक वह है जहां कानड़ी भाषा बोलो जाती है, और आंध्र वह है जहां तेजगू भाषा बोली जाती है; देखो-बरसम्मल बनाम बलराम चारलू ( 1863 ) I. M. H. C. 420, 425.
सिस्टर धारपुरे कहते हैं कि जहांपर मिताक्षराके आधार पर स्मृति चन्द्रिका,पराशर माधव,सरस्वती चिलास और दत्तक चन्द्रिकाका अर्थ लगाया जाता हो वह द्रविड़ स्कूल है देखो घारपुरे हिन्दूलॉ पेज १६ दफा २९ पञ्जाब स्कूल
शास्त्री गुलाबचन्द्र सरकार इन स्कूलोंके अतिरिक्त एक और स्कूल मानते हैं जिसे वह पञ्जाब स्कूल कहते हैं। इस स्कूलको दूसरे हिन्दूलों के लिखने वाले नहीं मानते । नज़ीरों में इस स्कूलके नामसे कोई हवाला भी नहीं दिया जाता देखो गुलाबचन्द्र सरकारका हिन्दूला पहिला एडीशन पेज २४; लॉ श्राफ्एडाप्शन पेज २२८-२५४
हिन्दूला जैसा कि पञ्जाबमें प्रचलित है उसमें और अन्य प्रांतोंमें माने जाने वाले हिन्दूलों में बहुतसे भेद हो सकते हैं, लेकिन यह भेद केवल स्थानीय रवाजसे जिनपर कि कानून निर्भर है पैदा होते हैं। देखो-टुप्परका पञ्जाब कस्टमरी लो जिल्द २ पेज ८२-८६
__ दूसरे स्कूलोंमें जैसा कि श्लोकोंका अर्थ करनेमें मतभेद होने के कारण हिन्दूलॉ में फरक पड़ता है वैसा पञ्जाबमें नहीं, दूसरे स्कूलोंकी भौगोलिक सीमा बिल्कुल ठीक ठीक नहीं बताई जा सकती परन्तु बहुत कुछ पञ्जावकी सीमा निर्धारित है। दफा ३० कानून बनानेका आधार रवाज भी है
हिन्दूला जिन आधारोंपर बना है उनमें से एक रवाज भी है जहांपर रवाज और स्मृति या क़ानूनमें भेद पड़ता है तो वहांपर रवाज प्रधान मानी जाती है। अगर व्यवहार या आचार पूरे तौरपर साबित हो जाय वह कानून से ज्यादा माना जाता है देखो-कलक्टर ऑफ् मदुरा बनाम मोटोरामलिङ्ग (1868) 12 M. I. A 397, 438.
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