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दफा ७८३-७८६ ]
दफा ७८५ मुक़द्दमा दायर करनेपर दामदुपट लागू नहीं होता
जब किसी क़र्जेकी नालिश अदालतमें दायर की गयी हो तो उस वक्त से दामदुपटका क़ायदा लागू नहीं होता अर्थात् यद्यपि कोर्ट इस बातकी पाबन्द है कि नालिश दाखिल करनेकी तारीखसे डिकरीकी तारीखतक दामदुपटका क़ायदा लागू रखे फिरभी उसे अधिकार है कि लेनदारके ठहरे हुये व्याजके हिसाब से, नालिशकी तारीख से डिकरीकी तारीख तक उसे मूलधन मानकर उसपर ब्याज दिलाने, देखो - 22 Bom. 86; 37 Bom. 226-3385 40I. A. 68; 33 Cal. 1269-1276.
दाम दुपट क्या है
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कानून जानता दीवानी सन् ११०८ ई० की दफा ३४ भी देखो, इसमें कहा गया है कि 'जब अदालतने रुपयाकी डिकरी दी हो तो अदालतको अधिकार है कि, उस सूदके अलावा जो नालिश दायर करने की तारीख तक मूलधनमें शामिल किया जा चुका है, जिस मूलधनकी डिकरी हो उसपर नालिश की तारीख से डिकरी तक तथा डिकरीले अदा होने तक सूद मजमूयी रक़म पर जो अदालतकी राय में मुनासिब मालूम हो दिलानेका हुक्म दे । यदि सूद के बारेमें अदालतने कोई हुक्म न दिया हो तो माना जायगा कि उसने सूद नहीं दिलाया ।
उदाहरण - महेशने गणेशको १०००) रु० २||) रु० सैकड़े माहवारी के हिसाबसे क़र्जा दिया, पीछे महेशने २५००) रु० की नालिश की जिसमें १००० ) रु० मूलधन और १५०० ) रु० ब्याजका था । दामदुपटके क़ायदे से अदालत २०००) रु० से अधिक डिकरी नहीं देगी लेकिन उसे यह अधिकार है कि जाबता दीवानी सन् १६०८ ई० की दफा ३४ के अनुसार २०००) रु० पर नालिशकी तारीख से डिकरीकी तारीख तक उसी सूदकी शरहसे सूद दिला दें जो पहले ठहरा हुआ था ( २ ॥ ) रु० ), और डिकरीकी कुल रक़मपर भी सूद दिलाये जो उसे मुनासिब मालूम हो । डिकरीके पीछे चाहे जितना ब्याज बढ़गया हो उसके वसूल करनेमें दामदुपट लागू नहीं होता क्योंकि डिकरीके पश्चात् यह क़ायदा बन्द हो जाता है, देखो -- ( 1875 ) 1 Bom. 73; लालबिहारीदत्त बनाम धाकूमनी ( 1896 ) 23 Cal. 899.
दफा ७८६ दाम दुपट इफिकाक रहनसे भी लागू होगा
दाम दुपटा कायदा न सिर्फ उन क़जौंकी नालिशसे लागू होगा जो बिना किसी लिखतके, या प्रामेसरी नोट, या तमस्सुक आदिके द्वारा दिये गये हों बल्कि जब कोई नालिश रेहन रखने वालेकी तरफसे 'इनफिकाक रेहन ( रेहन से छुटाना ) की कीजाय तो भी दाम दुपट लागू होगा।