Book Title: Hindu Law
Author(s): Chandrashekhar Shukla
Publisher: Chandrashekhar Shukla

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Page 1138
________________ दफा ८७५-८७६ ] धर्मादेक संस्थाके नियम હ 24 Mad. 243. लेकिन अगर वह उस जायदादको अपनी निजकी जायदाद बताकर काममें लावें तो वह अवश्य हटाया जा सकता है, देखो -- 15 Bom. 612. किसी ट्रस्ट के साथ जो धार्मिक कृत्य करनेका रवाज है यदि उनके किये जाने का यथेष्ट खर्च मौजूद हो और फिर भी वे न किये जायं तो यह बात ट्रस्ट के भंग करने वाली समझी जायगी, देखो -- --23 Mad. 298 और जब कोई ज़मीन किसीके क़ब्ज़े में इस शर्तपर हो कि वह उस मूर्तिकी, कि जिसके साथ वह ज़मीन लगी है पूजा किया करे, यदि वह पूजा न करे तो वह पूजा करने के लिये बाध्य किया जा सकता है और इनकार करनेपर हटाया जा सकता है, देखो -- 11 W. R. C. R. 443. दफा ८७६ हटाये जानेका कारण दामोदर भट्ट जी बनाम भट्ट भोगीलाल किशुनदास ( 1896 ) 22 Bom. 493-495 के फैसलेमें कहा है कि "इङ्गलैन्डमें जब किसी सार्वजनिक खैराती ट्रस्ट के ट्रस्टी गलतीसे उस ट्रस्टका धन ऐसे कामोंमें लगा देते हैं कि जिनमें वह नहीं लगाना चाहिये था । तो इङ्गलैन्डका क़ानून एक सीमा तक उनके मामलों में कुछ रियायत अवश्य करता है हमारी रायमें वैसी ही रियायत हिन्दुस्थान में सार्वजनिक हिन्दू मन्दिरों आदि के मेनेजरों और पुजारियों और दूसरी तरह के धर्मादोंके मेनेजरों और पुजारियों के मामलों में भी होना चाहिये. क्योंकि उन्हें अपनेको उक्त मन्दिरों या धर्मादोंके मालिक समझने की आदत हो गई है हालांकि क़ानूनमें वे महज़ ट्रस्टी, मेनेजर, शिवायत और पुजारी हैं इसलिये अब पीछेका ख्याल नं करके भविष्य में ऐसी व्यवस्था करना चाहिये कि जिससे मन्दिरोंका शासन उचित रीति से हो । चिन्तामणि वजाजी देव बनाम ढुंढू गणेशदेव 15Bom. 612 के मुक़द्दमेमें जो फैसला हुआ उससे यह सिद्ध हो गया कि सार्वजनिक हिन्दू मन्दिरोंके मेनेजरों पर भी अदालतका पूरा अधिकार है और यदि ज़रूरत हो तो अदालत उन मेनेजरोंको धर्मादेके लाभ से हटा सकती है । किन्तु उस फैसलेका यह मतलब कभी नहीं हैं कि दर एक मेनेजर जो अपनेको किसी मन्दिर आदिका मालिक समझ बैठे हटा दिया जाय इस तरह के प्रत्येक मामलेका फैसला उन मामलोंके सम्बन्धों के अनुसार ही होना चाहिये, देखो - 22 Bom. 493. जब तक कोई जालसाज़ी या बेईमानी न हो तो महज़ बदचलनी या गलती के कारण अदालत मेनेजरको बरखास्त नहीं कर देगी; देखो 21 Bom. 556; 13 Mad. 6. कुछ सूरतों में वह देखभालके लिये एक कमेटी स्थापित कर सकती है और उस ट्रस्टके प्रबन्धके लिये व्यवस्था निश्चित कर सकती है देखो - 21 Bum. 556. 133

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