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बाल विवाह निषेधक एक्ट
मे पास होनेके कारण यह एक्ट १९२९ ई. का उन्नीसवां एक्ट है और इसी नामसे इसका उल्लेख कानूनी पुस्तकों व नजायरके संग्रह आदि में मिलेगा । इस एक्ट में बालकों तथा बालिकाओंके विवाह छोटी उम्रमें किये जानेकी मनाही की गई है इस कारण इसका नाम “ बाल विवाह निषेधक एक्ट" पड़ा है । यह एक्ट किसी जाति विशेषके लिये नहीं बनाया गया है किन्तु इसका प्रयोग सभी जातियों के लिये किया जावेगा अर्थात् ब्रिटिश भारतमें बसने वाली सभी जातियों के लिये यह एक्ट लागू होगा।
उपदफा (२) में इस एक्टके विस्तारका वर्णन है उसके अनुसार इस एक्टका प्रयोग सारे ब्रिटिश भारतमें किया जावेगा। ब्रिटिश भारतकी परिभाषा सन् १८९७ ई. के जनरल क्लाज़ेज़ एक्ट के तीसरी दफाकी सातवीं उपदफामें दी हुई है उसके अनुसार ब्रिटिश भारतका तात्पर्य उन प्रदेशों व स्थानोंसे हे जो श्री राजराजेश्वरी के साम्राज्यमें हैं तथा जिनका प्रबन्ध गवर्नर जनरल हिन्द द्वारा अथवा किसी गवर्नर या अन्य अफसर द्वारा जो गवर्नर जनरल हिन्दका मातहत हो किया जाता हो, देखो-Sec 3 (7) of The General Clauses Act 1897. इस उपदफामें ब्रिटिश बिलोचिस्तान तथा सन्थाल परगनोंका उल्लेख विशेष रूपसे कर दिया गया है। यों तो यह स्थान ब्रिटिश भारत के अन्य स्थानोंकी भांति भारत सरकारही के मातहत हैं और ब्रिटिश भारतका भाग समझे जाते हैं परन्तु सीमा पर स्थित होनेके कारण तथा पहाड़ी विभाग या जङ्गली लोगोंसे आबाद होनेके कारण बहुधा उन सुधारोंसे बंचित रखे जाते हैं जिनका प्रचार ब्रिटिश भारतके अन्य भागोंमें किया जाता है । इस उपदफाके अनुसार यह स्थान ब्रिटिश भारतके विभाग माने जावेंगे अर्थात् इस एक्टका प्रयोग ब्रिटिश विलोस्तिान व सन्थाल परगनोंमें भी होगा। ब्रिटिश विलोचिस्तान भारत के पश्चिम भागमें है व अफगानिस्तान के दक्षिण की ओर पड़ता है इसकी राजधानी केटा है और इसका प्रबन्ध अधिकतर फौजी अफसरों द्वारा किया जाता है । सन्थाल परगने १८९७ ई. के जनरल काजेज़ एक्ट के अनुसार शिड्यूल डिस्ट्रिक्टमें शामिल हैं tal-Part IjI (Scheduled Districts Bengal) of the General Clauses Act 1897.
उपदफा (३) में बतलाया गया है कि यह एक्ट पहिली अप्रेल सन् १९३० ई० से अमलमें आयेगा । इससे यह प्रकट है कि पहिली अप्रेल सन् १९३० ई० से पहिले इस एक्ट के अनुसार किसी व्यक्तिको कोई दण्ड नहीं दिया जावेगा और न किसी व्यक्तिको इस एक्टके नियमोंका पालन करनेकी आवश्यकता ही है परन्तु पहिली अप्रेल सन् १९३० ई० या उसके बाद जो व्यक्ति इस एक्ट के नियमोंकी अवहेलना करेगा उसको एक्ट में बतलाये हुए नियमों के अनुसार दण्ड दिया जावेगा।
यह कानून ता. पहली अप्रेल सन् १९३० ई० की गत १२ बजे रात्रिसे लागू होगा क्योंकि तारीख हमेशा १२ बजे रात्रिके बाद बदल जाती है। सम्भव है कि किसी रवाज या खास मुहूर्त के अनुसार या इस कानूनके डरसे कोई आदमी ३१ मार्च सन् १९३० ई. को रात्रिके १२ बजेसे पहिले बाल विवाह की कृत्य शुरू करे और उस विवाहकी कृत्य ३-४ घंटेके बाद खतम हो, तो यहां पर यह प्रश्न उठता है कि वह बाल विवाह इस कानूनके लागू होने पर किया गया माना जायगा या पहले का ? ऐसी दशामें हिन्दू-लॉका सिद्धांत माना जायगा अर्थात् यह देखा जायगा कि कौनमी कृत्य ऐसी है कि जिसके हो जानेसे विवाह होना माना जाता है ।
विवाहकी रसम कब पूरी मानी जाती है:. विवाहका कृत्य समाप्त होतेही पति-पत्नाका सम्बन्ध आरम्भ हो जाता है। और विवाहका कृत्य समाप्त तब समझा जाता है जब बर और कन्या " सप्तपदी" कृत्य करलें । “ सप्तपदी" का मतलब सात भांवरोंके