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बाल विवाह निषेधक एक्ट
यदि पत कारण समझ पड़े तो ऐमी जमानत नहीं भी ले सकती है परन्तु ऐसा करते समय अशलत को चाहिये कि वह लिख कर उन कारणोंको बतलीय जिनके आधार पर वह जमानत नहीं ले रही हो । सौ रूपये से अधिककी जमानत इस दफार्मे नहीं बतलाई गई है । मुचलका या जमानत इस लिये ली जावेगी कि जिसमें मामला खारिज होने पर यदि अदालत मुलजिमको दफा २५० संग्रह जानता फौजदारी के अनुसार कोई मुआवजा दिलवाये तो वह रुपया अवश्य उससे वसूल किया जा सके। इस प्रकारकी जमानत होनेके कारण लोग झूठा इस्तगासा आसानी से दायर करने की हिम्मत नहीं करेंगे तथा अदालतको भी सब प्रकारसे यकीन हो सकेगा कि इस्तगासा के किसी हद तक साबित किंग जानेका प्रयत्न किया जावेगा । इस दफाके अनुसार लिया हुआ मुचलका या ज़मानत संग्रह जानता फौजदारी के अनुसार समझा जावेगा । और उक्त संग्रहका ४२ व प्रकरण लागू होगा अर्थात् उक्त संग्रह जानता फौजदारीकी दफा ५१३ से लेकर दफा ५१६ तक के नियम लागू होंगे ।
उक्त संग्रह जाबता फौजदारी की उपरोक्त दफायें इस प्रकार हैं:--
" ५१३ - जब कि किसी अदालत या अफसरने किसी व्यक्ति से मुचलका या ज़मानत और मुचलका मांगा हो तो वह अदालत या अफ़सर उस जमानत या मुचलका के एवजम नकद रुपया या सरकारी प्रामिसरी नोट दाखिल करा सकती है, केवल नेकचलनी के लिये लिखवाई हुई दस्तावेज़ के लिये ऐसा नहीं किया जावेगा ।
५१४ - ( १ ) जब कि उस अदालतको जिसने इस प्रकरणके अनुसार दस्तावेज़ लिखवाई हो या प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट अथवा अव्वल दर्जेके माजस्ट्रेटको यह साबित हो जावे या जब कि दस्तावेज़ हाजिरीके लिय लिखवाई गई हो तो उस अदालतको जहां की हाजिरीका सवाल है यह साबित हो जावे कि दस्तावेज जब्त हो गई हैं तो अदालत ऐसे सुबूत की वजूहात तहरीर करेगी और उस दस्तावेज के पावन्द होने वाले व्यक्तिसे उसका मुआवजा मांगेगी या उससे वजह जाहिर करने को कहेगी कि मुआविजा क्यों न लिया जावे ?
( २ ) यदि पर्याप्त कारण न दिखलाया गया हो और मुआविज्ञा न अदा किया जावे तो अदालत उस व्यक्तिकी मनकूला ( Moveable) जायदादको कुर्क करने तथा उसके नीलाम किये जानेका वारण्ट जारी करके उसे वसूल कर सकती है अथवा यदि वह मर गया हो तो उसकी जायदादसे वसूल कर सकती है ।
( ३ ) इस प्रकारका वारण्ट उस अदालत के अधिकार सीमामें तामील किया जा सकता है जिसने उसे जारी किया हो और उसके अनुसार अधिकार सीमासे बाहर भी उस व्यक्तिकी मनकूला जायदाद कुर्क व नीलाम उस समय की जा सकेगी जब कि चीफ प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेटने, जिसके अधिकार सीमामें वह जायदाद होने, अपनी सही कर दी हो ।
( ४ ) यदि ऐसा मुआविजा न अदा किया गया हो और वह ऊपर बतलाई हुई कुर्की व नीलामसे न बसूल किया जा सके तो वारण्ट जारी करने वाली अदालत अपने हुक्म द्वारा उस व्यक्तिको ६ महीने तकके लिये दीवानी की जेल में बंद कर सकती है ।
( ५ ) अदालतको अधिकार है कि ऊपर बतलाये हुए मुआविजेके किसी हिस्सेको माफ़ कर देवे तथा उसके किसी हिस्सेकी अदायगी ही के लिये कोशिश करे ।
( ६ ) यदि किसी दस्तावेजके जब्त किये जानेसे पहिले जामिनदार मर जावे तो उसकी जायदाद उस दस्तावेज के सम्बन्ध में हर प्रकारसे बरी समझी जावेगी ।
( ७ ) जब किसी व्यक्तिने दफा १०६, ११८ अथवा ५६२ के अनुसार जमानत दाखिल की हो और वह कोई ऐसे जुर्म का मुजरिम करार दिया जावे जिससे उस जमानत की कोई शर्त टूटती हो या दफा ५१४ के