Book Title: Hindu Law
Author(s): Chandrashekhar Shukla
Publisher: Chandrashekhar Shukla

View full book text
Previous | Next

Page 1177
________________ बाल विवाह निषेधक एक्ट दर्जा सोयमके अधिकार हों तो पचास रुपये तकवा मुआविजा जैसा कि उसे मुनासिब मालूम हो मुस्तगीस या इत्तला कुनिन्दासे मुलजिम या हर एक मुलजिमको दिये जाने का हुक्म दे सकता है । (ए) मजिस्ट्रेटको अधिकार है कि वह उपदफा ( २ ) के अनुसार मुआविजा दिलानेका हुक्म देते समय यह भी हुक्म द देवे कि अगर मुआविजा अदा न किया जावे तो उस व्यक्तिको जिससे मुआविजा दिलाया गया हे तीस दिन तककी सादी केन्द भोगेगा। (बी) जब कि कोई व्यक्ति उपदफा (ए) के अनुसार कैद किया गया हो तो ताजीरात हिन्दकी दफा ६८ व ६९ के नियम जहां तक कि उनका सम्बन्ध होगा लागू होंगे। (सी) वह व्यक्ति जिससे कि इस दफाके अनुसार मुआवजा दिलाये जाने का हुक्म हुआ ही ऐसे हुक्म के कारण किसी दीवानी या फौजदारी की जिम्मेदारीसे बरी नहीं होगा जिसके लिये कि वह अपने इस्तगासे या इत्तलाके कारण जिम्मेदार होत्र । परन्तु शर्त यह है कि यदि उसी मामलेके सम्बन्धमें दायर किये हुए दीवानीके मामले में इस हुक्मके बाद कोई मुआविज़ा दिलाया जावे तो मुलजिमको इस हुक्मके अनुसार दिलाय हुए रुपयेका ध्यान उस समय रखा जावेगा। (३) मुस्तगीस या इत्तला कुनिन्दा निसे कि उपदफा ( २ ) के अनुसार किसी दर्जा दोयम या सोयमके मनिस्टेटने मुआविजा देने का हुक्म दिया हो अथवा किसी दारे मजिस्टेटने पचास रुपयेसे ऊपर : देनेका हुक्म दिया हो, ऐसे हुक्मकी अर्गल जहां तक कि उसका ताल्लुक मुआविजेसे हैं उसी प्रकार कर सकता है जैसे कि वह मुस्तगीस या इत्तला कुनिन्दा उस मजिस्ट्रट द्वारा सुने हुए किसा मामलमें दोषी निर्धारित किया गया हो । (४) जब कि किसी मुलजिमको मुआविजा दिलाये जाने का हुक्म किसी ऐसे मामलमें हुआ हो जिमकी अपील उपदफा ( ३ ) के अनुमार की जासकती है ता वह मुआविजा उसको अपीलकी मियाद खतम होने तक नहीं दिया जावेगा या यदि अपील दायर कर दी गई हो तो उस वक्त तक नहीं दिया जावेगा जबतक कि अपीलका फैसला न हो चुके | आर यदि ऐसा हुक्म किसा एस मामले में हुआ हो जिसकी अपील न की जासकती हो तो हुक्म होनेसे एक महीनके अन्दर मुआविजा नहीं दिया जावगा"। ऊपर बतलाई हुई दफा २५० जाबता फौजदारीके नियमोंके अनुमार इस एक्ट के सम्बन्धमें दायर किये हुए झूठे व परेशान करने वाल मामलामें मुआविजा दिलाया जा सकता है। इलाहाबाद हाईकोर्टने यह तय किया है कि अगर कोई मामला रिवीजन (निगरानी ) में हाईकोर्ट के सामन आवे तो उसके लिये परेशान करने वाले मामलोंमें मुआविजा दिलवाना मशकूक है अर्थात् निगरानी मुआविजा दिलवानेका हुक्म देना सही नहीं मालूम होता है देखो-अमीनुला बनाम सरकार बहादुर 26 A.LJ.3283 A. I. R. 1928 All. 95. मुस्तगीस जिन गवाहोंको पेश करना चाहे उन सबका बयान होने के बाद अदालत यह राय कायम कर सकती है कि मामला झूठा है तथा वह बेजातौर पर या परेशान करनेकी सरजसे चलाया गया है । जब कि अदालतने थोड़से गवाहाको सुनने हा के बाद मामला समाप्त कर दिया हो तथा मुलजिमको मुआविजा दिलाया हो तो यह तय किया गया कि गो मजिस्ट्रेट मुलजिमको किसी समय भी रिहा (Discharge) कर सकता है परन्तु वह उस वक्त मुआविजा दिये जानेका हुक्म नहीं दे सकता था देखा-पी. नायकर बनाम कृष्णस्वामी अय्यर 51 Mad. 337; A. I. R. 1928 Mad. 169 (1) रिहाई के हुक्मके साथ यही हुक्म होना आवश्यक है कि वजह जाहिर करो कि मुआविजा क्यों न दिलाया जाव मुआविजा दिये जानेका हुक्म अदालत से भी दिया जा सकता है देखो - सादागरसिंह बनाम अरोरसिंह 110 I. C. 232.

Loading...

Page Navigation
1 ... 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182