________________
बाल विवाह निषेधक एक्ट
(१५)
4
अनुसार उसके एवजमें दस्तावेज लिखी गई हो तो जाबतासे ली हुई तजवीजकी नकल, जिसके मुवाफिक वह मुजरिम करार दिया गया हो, उसके जामिनदार या जामिनदारों के विरुद्ध काफी शहादत समझी जावेगी और यदि इस प्रकार कायदेसे ली हुई नकल पेश की जावेगी तो अदालत यह मान लेगी कि जुर्म किया गया है जब तक कि इसके विरुद्ध कोई बात साबित न की जावे।
__ ५१४ (ए)-जब कि इस संग्रहके अनुसार लिखाई हुई दस्तावेजका जामिनदार मर जावे या दिवालिया करार दे दिया जावे या दस्तावेज दफा ५१४ के अनुभार जन्त करली गई हो तो वह अदालत जिसने जमानत दाखिल करनेका हुक्म दिया हो या प्रेसीडेन्सी मजिस्टेट अथवा अव्वल दुर्जेका मजिस्ट्रेट उस व्यक्तिसे जिससे जमानत मांगी गई थी नई जमानत असली हुक्मके अनुसार मांग सकता है और अगर ऐसी .. जमानत दाखिल न की जावे तो वह अदालत या मजिस्ट्रेट उस प्रकार की कार्रवाई कर सकता है जैसे कि असली हुक्मकी तामील न की गई हो ।
___ ५१४ (बी)-जब कि वह व्यक्ति जिससे कि दस्तावेज लिखाई जानेको होवे, नाबालिग हो, तो - अदालत या अफसर उसके एवज़में जामिनदार या जामिनदारोंसे दस्तावेज लिखवा सकता है।
५१५-यदि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट या प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट के अतिरिक्त किसी मजिस्ट्रेटने दफा ५१४ के अनुसार कोई हुक्म दिया हो तो उसकी अपील डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेटके यहां की जा सकेगी या अगर इस प्रकार अपील की गई हो तो उस हुक्मकी निगरानी (Revision) उसके द्वारा की जा सकेगी।
__ ५१६ - हाईकोर्ट या सेशन्स कोर्ट किसी भी मजिस्ट्रेटको उस दस्तावेजका रुपया वसूल करने का हुक्म दे सकते हैं जो हाईकोर्ट या सेशन्स कोर्ट में हाजिर होनेके सम्बन्धमें लिखी गई हो” ।
____ऊपर बतलाये हुए सब नियम जो दफा ५१३ से लेकर ५१६ तकमें दिखलाये गये हैं इस दफाके अनुसार लिखी हुई दस्तावेजों के सम्बन्धमें भी लागू होंगे । इस दफामें संग्रह जाबता फौजदारीकी दका २५० के अनुसार दिलाये जाने वाले मुआविजेका उल्लेव है। उक्त दफाके अनुसार मुस्तगीससे मुलजिमको झूठे व पं करने वाले मामलोंके सम्बन्धमें मुआविज्ञा दिलाया जा सकता है इस दफाके अनुसार जैसा मुआविजा फौजदारीके और जुगोंके सम्बन्धमें दिलाया जा सकता है वैसा ही मुआविजा इस एक्टके जुर्मों के लिये भी दिलाया जासकेगा।
संग्रह ज़ाबता फौजदारी की दफा २५० इस प्रकार है:२५०--( १ ) यदि किसी मामलेमें जो इस्तगासे पर अथवा किसी पुलास आफिसर या मजिस्ट्रेटको इत्तला देने पर चलाया गया हो और एक या एकसे अधिक व्यक्ति ऐसे जुर्मके मुजरिम करार दिये गये हो और उस मामले को सु ने वाला मजिस्ट्रेट सब या उनमेंसे किसी मुलजिमको बरी कर देवे ( Acquit ) या रिहा (Discharge) कर देवे और उसकी रायमें उन सबके या उनमेंसे किसीके खिलाफ लगाया हुआ जुर्म झूठा हो तथा वह बेजा और परेशान करने की गरजसे लगाया गया हो तो, मजिस्ट्रेटको रिहाई या बरी करनेका हुक्म देते समय अधिकार है, कि अगर वह व्यक्ति जिसके इस्तगास या इत्तला पर जुर्म लगाया गया हो वहां मौजूद होवे तो उससे उसी वक्त वजह जाहिर करनेको कहे कि उससे उन सब मुलज़िमों या उनमें किसीको मुआविज़ा क्यों न दिलाया जावे या यदि वह व्यक्ति हाजिर न होवे तो उसके नाम सम्मन हाजिर होने को जारी करे और ऊपर बतलाई हुई वजह जाहिर करने को कहे ।
(२) मजिस्ट्रेट, मुस्तगास या इत्तला देने वाले व्यक्ति द्वारा बतलाई हुई वजहको लिखेगा तथा उस पर पार करेगा और यदि उसे यकीन हो जावेगा कि मामला झूठा था और बजा तोरसे अथवा परेशान करने की गरजसे चलाया गया था तो वह तहरीरी सबब दिखला कर सौ रुपये तकका मुआविजा या अगर मजिस्ट्रेटको