________________
बाल विवाह निषेधक एक्ट
जुरमाना कैसे वसूल किया जायगा ।
इस क़ानून में जुरमाना वसूल कस्नेकी कोई विधि नहीं बताई गयी यह बताया गया है कि मजिस्ट्रेड इस कानून के जुरमोंकी समाअत करेगा और समाअत करनेमें उन्हीं नियमों का प्रयोग किया जायगा जिनका उल्लेख संग्रह जाबता फौजदारी ऐक्ट नं० ५सन् १८९८ ई० में हैं इस सबबसे जुरमाना वसूल करनेके सम्बन्धमें वही नियम लागू समझना चाहिये जो उक्त संग्रह- जाबता फौजदारीमें बताये गये हैं । उक्त कानूनकी नीचे लिखी दफाएं जुरमाना वसूल करनेके सम्बन्धनें लागू होती हैं :
जाबता फौजदारी की दफा ३८६, ३८७, ३८८ और ३८६ इस प्रकार हैं:
३८६ – १ जब किसी मुल्जिमको जुर्मानेकी सजा दी गई हो, तो सजा देने वाली अदालतको अधिकार है कि वह जुर्माना वसूल करनेके लिये नीचे लिखे एक या दोनों तरीकोंसे उसे वसूल करे, अर्थात्(ए) वह मुल्जिमकी मनकूला जायदादकी कुकीं और नीलाम के लिये हुक्म दे ।
(बी) वह जिले के कलक्टर के नाम यह अधिकार देते हुए वारण्ट जारी करे कि वह जुर्माना न पाटने वालकी मनकूला या गैर-मनकूला जायदादकी, दीवानी कार्रवाई के अनुसार कुर्की करके जुर्मान की रक्कम को वसूल करे ।
मगर शर्त यह है कि जब सजाके हुत्रममें यह बात दर्ज हो कि जुर्माना न पटाने की सूरत में मुल्जिमको क़ैद की सजा होगी और अगर वैसे मुल्जिमने जुर्माना न पटानेके एवज में क़ैद की सजा भुगती हो, तो कोई अदालत जब तक कि खास कारणोंसे, जिन्हें वह लिखेगी, ऐसा करना जरूरी न समझे, ऐसा वारण्ट जारी न करेगी । २ लोकल गवर्नमेण्ट को अधिकार है कि वह उपदफा (१) क्लाज (ए) के अनुसार जारी होने बाले वारण्टके जारी करनेके लिये और ऐसी जायदाद के सम्बन्धमें किसी व्यक्ति के द्वास लाये हुए दानेका सरसरी तौर पर तस्फीया करने के नियम बनावे |
(१७.)
है जब कि उपदफा (१) लाज (बी) के अनुसार अदालत वारण्ट जारी करे, तो वैसा वारण्ट जानता दीवानी सन् १९०८ ई० के अर्थमें डिकरीके समान समझा जावेगा और सबसे नजदीक की दीवानी अदालत को, जिसे उस जानते के अनुसार वैसी रकम की डिकरी इजरा करनेका अधिकार है, वही अधिकार प्राप्त होंगे मानो कि वह डिकरी उसी अदालतसे हुई है और उस जावत में दिये हुए डिकरीके इजरा करने के कुल हुक्म उसको लागू होंगे ।
मगर शर्त यह है कि ऐसा कोई वारण्ट मुल्जिमों को जेलमें रखकर या उसे गिरफ्तार करके तामील नहीं किया जावेगा |
३८७-
-- कोई वारण्ट, जो किसी अदालत के द्वारा दफा ३८६ उपदफा (१) क्लाज (ए) के अनुसार जारी किया गया हो, वैसी अदालतकी हुकूमत के इलाके की मुकामी हदके अन्दर तामल किया जासकता है और उसमें यह अधिकार दिया जायगा कि उस मुजरिमको जो कुछ जायदाद वैसी हद के बाहर हो, वह भी कुर्क और नीलाम की जाय जब कि उस वारण्टकी पीठ पर उस जिला मजिस्ट्रेट या उस चीफ प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट के दस्तखत हों जिसके इलाकेकी मुकामी हदके अन्दर वैसी जायदाद मिली हो ।
३८८--१ जब कि किसी मुजरिमको सिर्फ जुर्माने की सजा दी गई हो और यह हुक्म दिया गया हो कि जुर्माना न पटाने की सूरत में उसे जेलकी सजा दी जावेगी, और अगर जुर्माना उसी वक्त न पावा जावे, तो अदालतको अधिकार है-