________________
(१२)
बाल विवाह निषेधक एक्ट
(२) यदि इस दफाके अनुसार कोई जांच या तहकीकात मजिस्ट्रेट या पुलीस अफसरके अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्तिस कराई गई हो तो उस व्यक्तिको वह सब अधिकार प्राप्त होंगे जो किसी थानदार (पुलीस स्टेशन के इनचार्ज अफसर ) को इस एटकके अनुसार प्राप्त हो सकते हैं, केवल उसे बिला वारण्ट गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त नहीं होगा। (ए) कोई भी मजिस्ट्रेट जो इस दफाके अनुसार तहकीकात कर रहा हो यदि उचित समझे तो गवाहों
के इलाफया बयान ले सकता है। (३) यह दफा कलकत्ता व वई शहरकी पुलीसके लिये भी लागू है । "
उक्त दफा २०२ के देखनसे यह प्रकट है कि प्रारम्भिक जांच किसी मजिस्ट्रेट, पुलीस अफसर अथवा अन्य व्यक्ति से मी कराई जासकती है परन्तु इस बाल विवाह निषेधक कानूनकी दफामें साफतौरसे बतला दिया गया है कि प्रारम्भिक जांच केवल मातहत मजिस्ट्रेटोंसे निनको दर्जाअन्चलके अख्तियार हों कराई जा सकती हैं अथवा स्वयं अदालतको ऐसी जांच करना चाहिये । उक्त दफा २०२ की उपदफा (१) के अन्तमें यह भी शर्त लगाई गई है कि मुस्तगीस का बयान दफा २०० संग्रह जाबता फौजदारीके अनुसार लिये जाने के बाद प्रारम्भिक जांचकी कार्रवाई की जाना चाहिये साथ २ यह भी उसी शर्तमें बतला दिया गया है कि यदि इस्तगासा किसी अदालत द्वारा दाखिल किया गया हो तो प्रारम्भिक जांचकी आवश्यकता नहीं है उपदफा २ (ए) के अनुसार प्रारम्भिक जांच करते समय मजिस्टेट गवाहोंके हलफिया बयान भी ले सकता है। यदि दफा २०२ के अनुसार मांच करते समय मजिस्ट्रॅट को मुस्तगीसके द्वारा लगाये हुए इलजामोंके विरुद्ध शहादत मिले तो मजिस्ट्रेटको चाहिये कि वह मुस्तगीसको ऐसी शहादत के काटने का मौका देवे देखो-मैक कार्थी बनाम शैनन 106I.C. 464; A. I. B. 1928 Mad. 135.
संग्रह जाबता फौजदारीकी दफा २.३ इस प्रकार है:-- "२०३-यदि मुस्तगीसका हलफिया बयान हआ हो तो उस पर विचार करने के बाद तथा दफा २०२ के अनुसार की हुई तहकीकात या जांच के नतीजेको देखकर यह उचित प्रतीत हो कि आगे कार्रवाई चालू करनेका पर्याप्त कारण नहीं है तो वह मजिस्ट्रेट जिसके यहां इस्तगासा दायर किया गया हो अथवा जिसके यहां मुन्तकिल किया गया हो उस इस्तगासको खारिज कर सकता है ऐसे मामलेमें मजिस्ट्रेट ऐसा करनेके कारण सूक्ष्ममें तहरीर करेगा।"
उक्त दफा २०३ के अनुसार मजिस्ट्रेट को इस्तगासा खारिज करने का अधिकार प्राप्त हैं और वह ऐसा उस समय कर सकता है जब कि मुस्तगीस के हलफिया वयान तथा दफा २०२ के अनुसारकी हुई तहकीकात में उसकी रायके मुवाफिक इस्तगासा कायम न रहना चाहिये इस बातका ध्यान रहना चाहिये कि जब तक जाहिरा तौर पर मुकदमा कायम न होता हो मुलजिमके बयान न लिये जाना चाहिये और अगर कोई मजिस्ट्रेट बिला काहिग तौर पर मुकदमा साचित होनेसे पहिले मलजिमके बयान लेवे तो वह दफा २०१ जावता फौजदारी की मंशाके विपरीत काम करेगा देखो-जोगिंदरसिंह बनाम आगा सफदरअली खां 111 I.C.878 (2), A.I.R. 1928. Lah. 88.दफा २०२ की अधिकतर मंशा यह कि मुस्तगीस तथा उसके गवाहों के अथवा उनमेंसे कुछ गवाहोंके प्रारम्भिक बयान लिये जावें जैसा कि अदालतको उचित समझ पड़े । यदि मजिस्ट्रेट को अपनी जांच के लिय यह उचित प्रतीत हो कि मुलजिम को एक मौका अपने सामने हाजिर होने तथा अपने विरुद्ध लगाये हुए इलजामों पर प्रकाश डालनेका दिया जावे और वह मुलाजिम द्वारा पेश हुई दस्तावनी शहादतको लेवे तथा उस पर विचार करे तो कानूनन उसे ऐसा करने की कोई मुमानियत नहीं है।