Book Title: Hindu Law
Author(s): Chandrashekhar Shukla
Publisher: Chandrashekhar Shukla

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Page 1169
________________ (८). बाल विवाह निषेधक एक्ट सजायें एक साथ दी जा सकेंगी उपदफा ( ए ) का अभिप्राय यह है कि यदि कोई नाबालिग चाहे वह लड़का हो या लड़की विवाह कर लेवे और ऐसे विवाहके करनेमें माता पिता या संरक्षक उसको किसी प्रकारसे प्रोत्साहन देखें या उसके करनेके लिये अपनी आज्ञा दे देवें या अपनी असावधानीके कारण ऐसे विवाहको हो जाने देवें अर्थात् अपनी लापरवाही की वजहसे ऐसे विवाह को न रोक सकें तो वह लोग दोषी निर्धारित किये जायेंगे इस दफाके अनुसार जुर्म साबित होने पर एक मास तक की सादी कैद व एक हजार रुपये तकका जुर्माना केवल पुरुषों ही पर किया जावेगा उनको दोनों प्रकारकी सजायें एक साथ भी दी जा सकेंगी. परन्तु स्त्रियोंको केवल जुर्माने ही का दण्ड दिया जा सकेगा । यह भी बात ध्यानमें रखने योग्य है कि जुर्माना न अदा करने पर उसके एवज़में भी स्त्रियोंको कैदकी सजा इस दफाके अनुसार नहीं दी जा सकेगी जैसा कि उपदफा (१) के अन्तमें दी हुई शर्तसे प्रकट है और जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती है। इस उपदफाके अनुसार केवल माता पिता व संरक्षक ही दण्डके पात्र नहीं होंगे किन्तु वह लोग भी दण्डनीय होंगे जिनकी देखरेख में नाबालिग रहता हो चाहे नाबालिग कानूनन ऐसे व्यक्तिकी देख रेखमें होवे जैसे कि गार्जियन एण्ड वार्डस एक्ट (Guardian & Wards Act) के अनुसार नियुक्त किये हुए वली की संरक्षता अथवा वह नाबालिग अपने आप ही या अन्य किसी प्रकारसे ऐसे व्यक्तिकी निगरानीमें आगया हो जैसे कि माता पिताकी अनुपस्थिति में किसी रिश्तेदार या किसी मित्र आदिके साथ रहना इत्यादि । विवाहके लिये प्रोत्साहन देना या उसके लिये आज्ञा देना ऐसी बातें हैं जो साधारणतया सपझमें आसकती हैं परन्तु असावधानीके कारण विवाहका न रोक सकना ऐसी बात है जिसके लिये कुछ प्रकाश डालनेकी आवश्यकता समझी गई और इसीलिये उपदफा (२) में इस बातको साफ कर दिया गया है कि यदि कोई नाबालिग बाल विवाह कर लेगा तो उसके माता पिता संरक्षक अथवा अन्य निगरानी रखने वाले व्यक्तिका कर्तव्य होगा कि वह साबित करे कि उसने बाल विवाहको रोकने का पूर्ण प्रयत्न किया था परन्तु वह पर्याप्त कारणों के होने की वजहसे उस विवाहको नहीं रोक सका या विवाह ऐसी दशामें हुआ था कि उसको इल्म ही नहीं हो सका अथवा कोई ऐसा ही अवसर आगया था जिससे वह ऐसे विवाहको रोकनेमें असमर्थ रहा अन्यथा यह मान लिया जावेगा कि वह लापरवाहीके कारण ऐसे विवाहको रोकनेमें असमर्थ रहा है। इस दफासे यह बात भली भांति प्रकट है कि केवल विवाह कराने का प्रोत्साहन देना या उसके लिये आज्ञा देना ही जुर्म नहीं है किन्तु उसको न रोकना भी वैसा ही जुर्म है और यह जुर्म उन सब लोगों पर लागू हो सकेगा जिनकी निगरानी में रहते हुए नाबालिग विवाह कर लेवे। ___इस दफामें नाबालिगसे तात्पर्य लड़का व लड़की दोनोंसे है और इस एक्ट के अनुसार १८ सालसे कम उम्र वाला लड़का या लड़की नाबालिग माना गयाहै परन्तु बाल विवाहसे तात्पर्य उस विवाहका है जिसमें लड़का १८ सालसे कम उम्र का हो या लड़की १४ सालसे कम उम्र की हो अर्थात् १० सालसे कम उम्रका लड़का व १४ सालसे कम उम्रकी लड़की होवे, इसलिये इस दफाके लिये अगर १८ सालसे कम उम्र वाला लड़का किसी उम्र बाली लड़कीसे विवाह करे तो उस लड़केका संरक्षक या माता पिता दण्डनीय होंगे इसी प्रकार यदि १८ सालसे कम उम्रकी लड़की (नाबालिगा ) किसी १८ सालसे कम उम्र वाले लड़केसे विवाह कर लेवे तो उस लड़कीके माता पिता या संरक्षक दण्डनीय होगे । यह आवश्यक नहीं है कि १४ सालसे कम उम्र वाली लड़की ही जब विवाह को तब उसके माता पिता या संरक्षक दण्डनीय होंगे क्योंकि १४ सालसे अधिक परन्त १८ सालसे कम उम्र वाली लड़की का विवाह १८ सालसे कम उम्र वाले लड़केके साथ होना भी बाल विवाह है। इसी प्रकार - यदि १४ सालसे कम उम्र वाली लड़की किसी उम्र वाले लड़के से विवाह कर लेवे तो उसके माता पिता या संरक्षक दण्डनीय समझे जावेंगे।

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