Book Title: Hindu Law
Author(s): Chandrashekhar Shukla
Publisher: Chandrashekhar Shukla

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Page 1164
________________ बाल विवाह निषेधक एक्ट बाद जो कृत्य किया जाता है उससे है देखो-लघु आश्वलायन स्मृति १५ विवाह प्रकरण तथा मानव गृह्यसूत्र पुरुष १ खण्ड ८ से १४ । एक बार पति-पत्नीका आपसमें ऐसा सम्बन्ध हो जाने पर कभी भंग नहीं हो सकता। मगर शर्त यह है कि विवाहमें कोई जालसाजी या जबरदस्ती न की गई हों इस विषयमें देखो-22 Bom.812. द्विजों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ) के विवाहमें दो रसमोंके पूरा कर चुकने पर विवाहकी कृत्य पूर्ण समझी जाती है एक हवन दूसरा सप्तपदी । 'सप्तपदी' शब्दका मूल अर्थ है 'सात पद वाला कर्म' विवाहमें अन्य कृत्यों के साथ सात भांवरोंके हो जाने पर वर और वधू ग्रन्थिबंधन सहित अग्निके सम्मुख विधि के अनुसार सात पद चलते हैं उसे ' सप्तपदी' कहते हैं । यह कृत्य समाप्त होतेही विवाह पूरा हो जाना माना जाता है देखो33 Bom. 433-438; 32 Mad. 512-520; 12 Cal. 140. अगर किसी द्विजके विवाहमें हवन और सप्तपदीकी कृत्य बाकी रह गई हों मगर गौना हो गया हो तो महज़ गौना हो जानेके सबबसे विवाहकी कृत्य पूरी नहीं समझी जायगी देखो-9 Mad. 466-470; 10 Bom. 301-311 और अगर किसी जातिमें कोई खास रस्मके पूरा करने पर विवाहकी कृत्य पूरी समझी जाती हो तो उस जातिके लिये उस रसमके हो चुकने पर उस विवाहकी कृत्य पूरी मानी जायगी देखो-5 Cal. 692, 10 Cal. 138. और जहां पर यह साबित हो कि विवाहकी सब कृत्ये हो चुकी थीं तो अदालत उसे विवाह पूरा होना मान लेगी देखो22 Bom. 277; 38 Cal. 700. जब द्विजोंमें ता. ३१ मार्च सन् १९३० ई० की १२ बजे रात्रिसे पहले हवन और सप्तपदी दोनों कृत्ये समाप्त हो चुकी हों और बाकी कृत्ये १२ बजे रात्रिके बाद चाहे जितने समय तक होती रही हों तो माना जा सकेगा कि वह बाल विवाह इस कानूनके लागू होनेसे पहले हो गया है। यही बात उस विवाहके साथ भी लागू होगी कि जिस कोममें कोई खास रसमके पूरा हो चुकने पर विवाह पूरा होना माना जाता.हो और यह रसम १२ बजे रात्रिके पहिले हो चुकी हो । पञ्चाङ्गके देखनेसे पता चलता है कि विवाहकी लग्न अब तारीख १ अप्रैल सन् १९३० ई. तक है ही नहीं फिर भी यदि किसीने इस कानून के डरसे विवाह कर लिया तो यह प्रश्न अदालतमें नहीं पैदा होगा कि उसने बिना मुहूर्त के विवाह किया है इसलिये नाजायज है। .. : मुसलमानोंमें विवाह सम्बन्ध पूरा होनेके लिये यह आवश्यक है कि विवाह सम्बन्ध करने वाले व्यक्तियों में से एक पक्ष प्रस्ताव करे या उसकी ओरसे कोई अन्य व्यक्ति प्रस्ताव करे तथा वह प्रस्ताव दूसरे पक्ष द्वारा मंजूर किया जावे । यह प्रस्ताव दो पुरुषोंके सामने अथवा एक पुरुष व दो स्त्रियों के सामने किया जाना चाहिये और ये स्त्री व पुरुष मुसलमान होना चाहिये । प्रस्तावका किया जाना व उसका मंजूर होना एकही मीटिंगमें होना चाहिये । अगर प्रस्ताव एक मीटिंगमें किया गया हो व दूसरी मीटिंगमें वह मंजूर किया जावे तो वह उचित विवाह नहीं माना जावेगा जिन लोगोंके सामने विवाहका प्रस्ताव किया जाकर मंजूर हुआ हो वह बालिग होना चाहिये तथा उनके होश हवास भी दुरुस्त होना चाहिये । इसके अतिरिक्त और भी बहुतसी बातें हैं जिनकी पूर्ति न होने पर विवादका पूर्ण होना तथा ठीक होना नहीं माना जासकता है जैसे कि इद्दतमें निकाह का होना 'अथवा चार स्त्रियोंके होते हुए निकाहका किया जाना या उचित वली द्वारा निकाहका न होना या किसी अन्य प्रकारकी धोखादेहीका किया जाना इत्यादि । दफा २ परिभाषायें ___ यदि कोई बात विषय या प्रसंगके विपरीत न पड़ती हो तो इस एक्ट में प्रयोग किये हुए निम्न लिखित शब्दोंका अर्थ इस प्रकार होगा:

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