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लड़कियोंकी १४ साल रखने की शिफारस की। इस समितिने विलमें एक भारी परिवर्तन किया । मूल बिलमें सजा देने वाली दफाओंमें अंग्रेजी वाक्य शैल बी पनिश्ड' (Shall be punished) था उसकी जगह पर 'शैल बी पनिशेबुल' (Shall be punishable) वाक्य कर दिया । इन दोनों वाक्योंके असरमें आकाश पातालका अन्तर होगया अर्थात् अगर पहलेका वाक्य बना रहता तो इस कानूनका अपराध साबित होने पर अदालतको सजा देना लाज़िमी हो जाता वह किसी तरह पर भी छोड़ नहीं सकती थी, मगर उसकी जगह नया वाक्य जोड़ देनेसे अदालतको यह अधिकार हो गया कि अगर वह चाहे तो अपराधीको बिल्कुल छोड़ दे, कोई भी सज़ा न दे। भाखिरी वाक्यके साथ यह कानून पास हुआ है । इसका असर यह होगा कि अदालतमें अपराध प्रमाणित हो जाने पर भी चेतावनी देकर अदालत छोड़ सकेगी। अब यह कानून बहुतही मुलायम हो गया और मुझे विश्वास है कि अदालतें उस समय तक इस कानूनका सस्ताके साथ प्रयोग नहीं करेंगी जब तक उनकी रायमें जनता इससे पूर्ण रूपसे वाकिफ न हो जावे। रिपोर्ट में पूज्य महामना पं. मदनमोहन मालवीय जीका विरोध उल्लेखनीय है आपने कहा कि मैं अपने मित्र मेम्बरोंके बहुमतसे दो विशेष बातोंमें सहमत नहीं हूँ मैंने इस बात पर जोर दिया था कि १४ वर्षकी लड़कियोंकी आयु घटाकर ११ वर्ष कर दी जावे जिससे प्रत्येक जातिको पूर्ण सहयोगके साथ बाल विवाहके रोकनेका प्रस्ताव पास किया जासके परन्त मेरी बात नहीं मानी गई, हम लोगोंको ध्यानमें रखना चाहिये कि इङलिस्तान देशमें भी बाल विवाहकी आयु १२ साल रखी गई है इत्यादि । ता० २२ सितम्बर १९२८ ई० को सर्व साधारणके जाननेके लिये दूसरी विशेष समिति द्वारा संशोधित बिल गवर्नमेन्ट गज़टमें प्रकाशित किया गया । ठीक एक सालके बाद ता. २३ सितम्बर सन् १९२९ ई. को यह बिल बड़ी कौन्सिलके सामने पास होने के लिये आया और अच्छे संघर्षके साथ वाद विवाद उपस्थित हुआ। बिलके विरोधी पक्षने दांव पेंच खूब खेले, किन्तु उनके सभी प्रस्ताव रह होते गये और मत लिये मामे पर बहुमतानुसार जिस रूपमें विल पेश हुआ था उसी रूपमें पास हो गया ।
बड़ी कौन्सिलमें बिल पास हो जानेके बाद ता. २८ सितम्बर सन् १९२९ ई० को राज्यपरिषद ( Council of State ) में पेश हुआ। वहाँ भी सरगरमीके साथ बहस हुई, दोनों दलोंमें अच्छी भिडंत हुई। हिन्दू और मुसलमान दोनोंके दो दो दल थे। अन्तमें चोट लिये जाने पर बहुमतानुसार जिस रूपमें बड़ी कोन्सिलने बिल पास किया था उसी रूपमें यहां भी पास हो गया । अब कानून बनने के लिये सिर्फ श्रीमान् गवर्नर जनरल महोदयकी मंजूरी बाक़ी रही ।
__ता० । अक्टूबर सन् १९२९ ई० को श्रीमान गवर्नर जनरल महोदयने, बिना कुछ घटाये बढ़ाये और संशोधन किये जिस रूपमें दोनों कौन्सिलोंने बिल पास किया था उसी रूपमें मंजूरी मदान कर बिलको, कानून बना दिया। अब बिलका रूप नष्ट हो गया और वह कानूनके रूपमें देशवासियोंके सामने भाया । ता० १ अप्रेल सन् १९३० ई० से इस कानूनका प्रयोग किया अयगा।
इस कानूनके पास होनेसे अशिक्षित समाजके मनमें भय और चिन्ता उत्पन्न हो गई है वे सोचते हैं कि अब हमें अपनी लड़कियों और लड़कोंके विवाह सम्बन्धमें डाक्टरी परीक्षा कराना पड़ेगी तब विवाह होगा, डाक्टर साहबको फीस देना पड़ेगी, समय बहुत खराब पड़ता जाता है यह रकम कहाँसे आयेगी ? पुलिस योंही नाकोंदम किये है अब विवाहमें भी हमें खूब सतायेगी, पुलिसको एक अच्छा हथियार मिल गया, अगर विवाह किसी तरह हो गया तो दुश्मन पड़ोसियोंके द्वारा अदालतसे १०००) रु० जुर्माना व १ मासकी सज़ा भी हमें हो सकेगी। खानेका ठिकाना नहीं है