Book Title: Hindu Law
Author(s): Chandrashekhar Shukla
Publisher: Chandrashekhar Shukla

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Page 1148
________________ दफा ८६१-८१२] धर्मादेकी संस्थाके नियम १०६७ (ज) ट्रस्ट भंग किये जानेकी बिनापर जायदादके कजेका दावा (2 N. W. P. 420 ). दफा ८९१ कैसे लाभके लिये दावा किया जा सकता है . उपरोक्त एक्ट नं० २० सन १८६३ ई०की दफा १५ इस प्रकार है-दफा १४ के अनुसार जिस स्वार्थ के लिये दावा किया जा सकता है यह जरूरी नहीं है कि वह स्वार्थ धनसे सम्बन्ध रखता हो या वह सीधा (डाइरेक्ट) हो या ऐसा हो कि किसके कारण दस्टकी देखरेख और प्रबन्धमें भाग लेनेका हक मुद्दईको हासिल हो। कोई भी आदमी जो किसी मसजिद, मंदिर या धार्मिक संस्थामें उपस्थित रहा करता हो या वहांसे मिलने वाली भिक्षा प्राप्त करता रहा हो वही ऐसा आदमी है कि जिसको दफ १४ के अनुसार दावा करनेका हक्क प्राप्त है इस कानूनके अनुसार जो दावे या कार्रवाइयांकी जाएं उनमें अदालतको अधिकार है कि मतभेदका निर्णय पंचायत ( Arbitration) से कराले-26 Mad, 361, 19 Mad. 498. दावा दायर करने की इजाज़त-इस कानूनकी दफारजो सन्१८७०ई० के एक्ट नं०७ से संशोधित हुई है उसका मतलब यह है कि इस कानूनके अनुसार अदालतसे इजाज़त लिये बिना कोई दावा दायर नहीं किया जा सकता। इजाज़तकी दरख्वास्त देनेपर अदालत यह विचार करेगी कि प्रत्यक्ष में कोई ऐसी बातें मौजूद हैं जिनके ख्यालसे इजाज़तदीजाय अगर अदालतकी रायमें दूस्टके लाभके लिये दावा दायर किया गया है और किसी फरीका कुछ दोष नहीं है तो वह दूस्टीकी जायदादसे मुक़दमेका खर्चा जो उचित समझे दिलायेगी (22 W. R.C. R. 22 ) ध्यान रहे कि दावा दायर करने की इजाज़त वह स्वयं या उसका वकील मांग सकता है, तथा यदि अदालत उचित समझे तो दूसरे फ़रीक़के नाम नोटिस भी न देवे और जिस घातकी रजाजत मांगी गई हो ठीक उसीका दावा दायर हो सकता है दूसरेका नहीं। इजाज़तकी दरख्वास्तकी मंजूरी या नामंजूरीके हुक्मकी अपील नहीं हो सकती किन्तु जो दावे हाईकोर्ट में सीधे दायर हो सकते हैं उनमें इजाज़त मांगनेकी ज़रूरत नहीं है। दफा ८९२ अदालत ट्रस्टका हिसाब मांग सकती है उपरोक्त एक्ट नं० २०सन् १८६३ ई०की दफा १६ इस प्रकार है-दावा दायर करनेकी इजाज़त देनेसे पहले, या अगर इजाज़त दी गई हो तो दावा दायर किये जानेसे पहले या किसी वक्त जब कि दावा चल रहा हो, अदालत ट्रस्टी मेनेजर सुपरिन्टेन्डेन्ट या मेम्बर कमेटीको हुक्म दे सकती है कि वह ट्रस्टका हिसाब या उसका कोई भी अंश जो अदालत मुनासिब समझे पेश करे।

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