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दफा ६३६-८३८]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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कोई एक शिष्य जिसको वह अपनी गद्दीपर बिठा जाता है वही वारिस होता है मतलब यह है कि वह जायदाद उस गद्दीके साथ लगी रहती है जो गही पर बैठे वही जायदाद पावे; देखो--सनमन्था पण्डा बनाम सैलप्पाचट्टी 2 Mad 175-179; यदि मठोंकी उत्पत्तिके विषयमें अधिक देखना हो तो देखो कैलाशं पिल्ले बनाम नटराज तंबिरन (1909) 33 Mad. 265; सामंतपंडारों बनाम सिल्लप्पाचिट्टी 2 Mad. 175; 10 Mad. 375; 27 Mad. 435.
मठमें मूर्तियां भी होती हैं लेकिन उनकी पूजाका अलग मामला है मठका उद्देश यह होता है कि योग्य धर्मोपदेशक एकके बाद दूसरा उचित मान-मर्यादाके साथ अपना काम करते रहें। उनको मठकी कुल आमदनीका लाभ मिलता है मठमें अर्पणकी हुई जायदाद सम्बन्धी शौका मानना या न मानना उनकी इच्छापर निर्भर है इन सब बातोंसे यही सिद्ध होता है कि मठ का मुख्य मालिक वहांका प्राचार्य है वह केवल ट्रस्टी ही नहीं बल्कि असली मालिक होता है, देखो-विद्या पूर्ण तीर्थ स्वामी बनाम विद्या निधि तीर्थ स्वामी 27 Mad. 435; 442, 454, 455.
महन्तके पदका और कामका कानूनी निर्णय, रसम, रवाजसे तथा शहादत द्वारा साबित किया जायगा, देखो-11 M. I. A. 405; 8 W. R: P. C. 25-26 और देखो इस किताबकी दफा ८३२ 'मंदिर और मठ'। दफा ८३८ महन्तके अधिकार
महन्त, स्वामी, गोस्वामी या कोई मठाधीशका दर्जा और अंधिकार शिवायत, पुजारी या मन्दिर अथवा मूर्तिके धर्मादेके मेनेजरसे भिन्न होतें हैं। महन्तके सम्बन्तमें मदरास हाईकोर्ट ने यह राय ज़ाहिर की कि उसकी हैसियत केवल मेनेजर या दूस्टीकी नहीं है यद्यपि वह जायदादका इन्तकाल आम तौरसे नहीं कर सकता फिर भी वह उस सब आमदनीको जो मठ की जायदादसे प्राप्त हो और जो कुछ भी चढ़ावा या दक्षिणा श्रादि आये खर्च करनेका पूरी तौरसे अकेला अधिकार रखता है। उस धर्मादेमें बँधे हुए जो खर्च हैं उनको महन्त ज़रूर पूरा करेगा सब खर्चोंके होनेके पश्चात् जो रक्रम बचे उसे वह उस सम्प्रदाय और सदाचार, सद्व्यवहारानुसार सब खर्च कर देनेका पूरा अधिकार रखता है कानूनन् उससे कोई हिन्दू उस खर्च की रकमका हिसाब नहीं ले सकता, देखो-27 Mad. 435-455.
अगर महन्तको किसीसे इस मतलबके लिये कोई जायदाद मिली हो कि वह उसे किसी निश्चित समयमें निश्चित किये हुए खैरातके काममें लाये तो महन्त उस जायदादका दूस्टी है और अगर मठ या मंदिरका कोई रवाज हो कि अमुक क़िस्मकी रक़म अमुक खैरात या दूसरे काममें ही खर्च की जाती है तो भी वह इसके लिये ट्रस्टीकी हैसियत रखेगा। अदालत यह
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