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दफा ८७०-८७१]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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दादपर काबिज़ रहें, मगर शर्त यह है कि इस क्रिस्मका बटवारा तभी हो सकेगा जब कि ऐसा बटवारा बिना किसी किस्मकी हानि और धर्मादेके वास्तविक स्वरूपके बिना बदले मुमकिन हो, देखो-34 Mad. 470; 34 Cal. 828; 11C. W. N. 782, 6 Bom. 298; 14 B. L. R.1663 22 W. R. C. R. 437; 8 W. R. C. R. 193; 4 Cal. 6833; 8 Cal. 807:10 C. L. R. 439; 6 B. L. R. 352, 15 W. R C. R. 29.
जब ऐसा मामला अदालतके सामने पेश होगा तो बहुत करके अदालत यह हुक्म देगी कि खान्दानके लोग बारी बारीसे देवमूर्ति या मंदिरके पूजनका क्रम आपसमें निश्चित करलें या किसी अन्य प्रकारके क्रमका फैसला करले या कोई अनुक्रम कायम करलें--राजा चित्रसेन की बड़ी विधवा बनाम राजा चित्रसेन की छोठी विधवा (1807) 1 Ben Sel.R. 180 नया संस्करण पेज २३६ वाले मुकद्दमे में मुश्तरका खान्दानकी दो देवमूर्तियां थीं और दोनों में अलग अलग जायदाद लगी थी । एक हिस्सेदारने एक देवमूर्तिपर और उसमें लगी हुई जायदादपर भी कब्ज़ा कर लिया इसी तरह दूसरे हिस्सेदारने दूसरी देवमूर्ति और उसमें लगी हुई जायदादपर कब्ज़ा कर लिया, अदालतने इसे उचित माना।
मुद्दइया नरेनीने दावा किया कि मंदिरमें पूजा करनेके लिये मेरी बारी नियत कर दी जाय । मंदिर खान्दानी देवमूर्तिका था मुंसिफ साहबने देवमूर्ति की पूजाका दावा खारिज किया और उसमें शामिल मकानके बटवारेका दावा डिकरी किया। जज साहबने दोनों दावे डिकरी किये हाईकोर्टमें यह तय किया गया कि मु० नरेनी को ऐसा दावा करनेका अधिकार है कि देवमूर्तिके पूजन के लिये बारी नियत की जाय, देखो-1923 A. I. R. 425 All.
दामोदरदास मानिकलाल बनाम उत्तमलाल मानिकलाल 17 Bom.271. 288. वाले बटवारे के मुकदमे में बम्बई हाईकोर्टने खान्दानकी देवमूर्तिका पूजन और उसमें लगी हुई जायदादका प्रबन्ध खान्दानके सबसे बड़े मेम्बरके आधीन कर दिया, यह राय ज़ाहिरकी कि जब वह मेम्बर मर जाय तो ज्यादा हक्क वाले दूसरे मेम्बरको उसका उत्तराधिकार प्राप्त होगा। यद्यपि बम्बई हाईकोर्ट ने ऐसा फैसला मुक़द्दमेके अन्य सम्बन्धोंके कारणसे किया किन्तु आम कायदा तो यह है कि खान्दानके सब मेम्बर बारी बारीसे देवमूर्तिका पूजन और उसकी जायदादका प्रबन्ध करते हैं, यह कायदा प्रायः सब जगहपर माना जाता है, देखो-14 B. L. R. 166; 22 W. R. C. R. 437. भट्टाचार्यका लॉ आफ् ज्वाइन्ट हिन्दू फैमिली P. 462; 4 Cal. 683, 8 Cal. 807; 10 C. L. R. 439.
नोट-पूजन, यज्ञ, बलिदानका स्थान, देवमूर्तिमें लगी हुई जायदाद, दूसरी धार्मिक रसमें या पूजन पाठका स्थान ये सब असली रूपको बिगाड़कर बटवारा नहीं की जा सकती, देखोइस किताबकी दफा ३९४, ५२७, ८२३.