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धार्मिक और खैराती धर्मादे
[सत्रहवां प्रकरण
दावा दायर करनेका हक़ और ट्रस्ट तथा धर्मादे सम्बन्धी
जरूरी कानूनी बातें
दफा ८७२ अदालतोंका अधिकार
दीवानी अदालतोंको यह अधिकार है कि वे ऐसे धर्मादोंके इन्तज़ाम करनेका हक निश्चित करें और यह निश्चित करेंकि उन धर्मादोंमें काम करनेके अधिकारी कौन लोग हैं । उन्हें यह भी अधिकार है कि उन धर्मादोंकी जायदादकी रक्षाके लिये हस्तक्षेप करें, और उनके उद्देशोंका ठीक अर्थ लगावें तथा उन उद्देशोंको कायम रखें और साधारणतः उन सब प्रश्नों का फैसला करें जो उन धर्मादोंके उद्देशोंकी उचित पूर्तिके सम्बन्धमें पैदा हों। देखोजावता दीवानी सन् १६०८ ई० की दफा ६ इस दफाका सारांश यह है कि जिस नालिशमें किसी मिलकियत या किसी हनका झगड़ा हो चाहे वह हक़ किसी मज़हबी रसम, या रवाजपर निर्भर हो, ऐसी नालिशें दीवानी अदालतमें दायर होंगी।
__ पूजा-किसी खास मन्दिरमें कौन लोग या किस फिरनेके लोग पूजा करमेका हक रखते हैं, और कौन लोग पूजा करनेसे बंचित किये जा सकते हैं इसके सम्बन्धका दावा अदालतमें दायर हो सकता है, ऐसा दावा दीवानी अदालतमें होगा, देखो-35 I. A. 176; 31 Mad. 236, 12 C. W. N. 946 और जो मन्दिर ब्रिटिश हिन्दुस्थानके बाहर हैं (जैसे रजवाड़ोंमें अनेक मन्दिर हैं ) उनके सम्बन्धमें अगरेज़ी अदालतोंको कोई अधिकार प्राप्त नहीं है, देखो-त्र्यंबक बनाम लक्षिमण 20 Bom. 495.
पेनशन्-पेनशन्स एक्ट नं०२३ सन् १८७१ ई० की दफा ४ इस प्रकार है-'कोई पेनशन या रुपयाका दान, या मालगुज़ारीकी माफी जो अङ्गरेजी सरकारने या पहलेकी किसी सरकारने चाहे किसी ख्यालसे और चाहे कैसे ही दावे या हक़के ऊपरकी हो, उसके सम्बन्धका कोई मामला कोई दीवानी कोर्ट नहीं सुनेगी मदरासमें माना गयाकि धर्मादोंसे इस दफाका कोई सम्बन्ध नहीं है, देखो-31 Mad. 12; 2 Mad_294; 11 Mad. 283. लेकिन बम्बई हाईकोर्टने मानाकि अवश्य सम्बन्ध है, देखो-22 Bom. 4963 16 Bom. 537; 8 I. A. 77; 5 Bom. 408. दफा ८७३ टस्ट भंग करनेके कारण अदालतमें दावा
(१) किसी भी धर्मादेमें स्वार्थ या लाभ रखने वाले लोग जैसे पूजा करने वाले, या किसी देवमूर्तिके उपासक या भक्त या जिसने वह मूर्ति स्थापितकी हो उसके कुटुम्बका कोई भी आदमी हक रखता है कि यदि उस