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धार्मिक और खैराती धर्मादे
[ सत्रहवां प्रकरण
खान्दानके सब भादमी मिलकर देवोत्तर जायदादको बदल सकते हैं मगर पुजारी या शिवायतकी मंजूरी बेअसर है । इस मुकद्दमेमें खान्दानके सब लोगोंकी रजामन्दी न थी इसलिये जायदादका बदलाव नाजायज़ करार दिया गया, देखो-27 C. W. N. 218. दफा ८७० कुकीं और नीलाम
निम्न लिखत धर्मादेके अधिकार और धर्मादेकी जायदाद, मठाधीश या मुख्याधिष्ठाताके विरुद्ध अदालतकी किसी डिकरीके द्वारा कुर्क और नीलाम नहीं हो सकती । इस विषयमें देखो-ज़ाबता दीवानी सन् १६०८ ई० की दफा ६० इस दफामें कहा गया है कि प्रत्येक हक ज़ाती खिदमतका कुर्क और नीलाम नहीं हो सकता। (१) धर्मादेके प्रबन्ध करनेका हक या दूस्टीपन-4 All. 81; 7 W.
R. C. R. 266. (२) मंदिरकी सेवा या उसमें लगे हुए दूसरे धर्मादे-राजाराम बनाम
गनेश 23 Bom. 131; 5 B. L. R. 617; 14 W. R. C. R.
409; 4 All. 81. (३) पूजनका हक-काळीचरणगिरि गोसाई बनाम रंगशी मोहनदास
6 B. L. R. 727; 15 W. R. 339. (४) देवमूर्तिका चढ़ावा-29 Cal. 470; 6.C. W. N. 728. (५) देवमूर्तिकी सेवासे यदि बहुत ज्यादा आमदनी होती हो मगर
वह आमदनी निश्चित न हो-जुगुरनाथराय चौधरी बनाम किशु.
नप्रसाद 7 W. R. C. R. 266. नोट-मंदिरके किसी नौकरने यदि अपने काम करने के बदलेमें कोई जायदाद मंदिरमें या मंदिरकी प्राप्तकी हो जो उसके कब्जेमें हो, उस जायदादकी कुकी और नीलाममें कोई बाधा नहीं पड़ती । दफा ८७१ मुश्तरका खान्दानमें बटवारा
धर्मादे और धार्मिक कृत्ये कुदरती तौरसे अविभाज्य होती हैं अगर कोई अर्वाचीन रवाज ऐसी हो कि पक्षकार देवमूर्तिका पूजन बारी बारीसे करनेके अधिकारी हैं और धर्मादे की पाबन्दियों के साथ उन्हे इन्तकाल करनेका भी अधिकार है, जायज़ माना जा सकता है, देखो-20 Bom. 495.
___ बटवारेमें हिस्सेका तरीका--किसी खान्दानकी देवमूर्ति या मंदिर या धार्मिक धर्मादेका प्रबन्ध जब मुश्तका खान्दानके लोगोंके अधिकारमें हो, इस सौरसे बटवारा किया जा सकता है कि हर एक हिस्सेदारके हिस्सेके अनुसार किसी निश्चित समय तक क्रमसे वे देवमूर्तिका पूजन करें और उसकी जाय