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दफा ८६७-६६६]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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76. और अगर ऐसा रवाज साबित किया गया हो कि पूजन विधि बदलने के लिये इन्तकाल किया जा सकता है तो भी नहीं मानेगी 7 Mad. H. C. 32.
नीचे के मुक़द्दमों में माना गया कि पूजन विधिका परिवर्तन आमतौरसे इन्तकालके योग्य नहीं है-34 Cal. 818; 11 C. W. N. 782, 3 W. R. C. R. 152; 5 All. 81; 16 C. W. N. 129.
देवसेवाके वास्तविक अभीष्टसे जो इन्तकालकी दस्तावेज़ लिखी गई हो जायज़ मानी जा सकती है, देखो-17 Cal. 557.
जिस मेनेजरको प्रबन्ध करते हुये अधिक ज़माना बीत जानेसे प्रन्बध का पूरा अधिकार कानूनन् प्राप्त हो गया हो जिसे 'प्रक्रिप्टिव् राइट' कहते हैं, ( देखो दफा ८६४ ) वह अपना अधिकार दूसरेको देदे, जिसे वैसा अधि. कार प्राप्त नहीं है तो ऐसा इन्तकाल जायज़ माना जायगा, देखो-24 Mad. 219.
नोट-इन्तकालके मंसूख करानेके दावेमें कानून मियाद लागू होता है यही बात 1 Madi 337 वाले मामलेमें मानी गई जबकि धर्मादेके प्रबन्ध या उसके सम्बन्धी कामोंके हक़का इन्तकाल किया जाय तो माना गया है कि सिर्फ उस हकका ही इन्तकाल ऐसे ढंगसे करना चाहिये कि जिससे टूस्टके उद्देशोंके सम्पादन करनेमें कोई बाधा उपस्थित न हो। दफा ८६९ खान्दानकी देवमूर्तिके धर्मादेका परिवर्तन
किसी खान्दानकी देवमूर्तिमें लगी हुई धर्मादेकी जायदाद उतनी चिरस्थायी नहीं होती जितनी कि सार्वजनिक धर्मादेकी होती है । खान्दानकी देवमूर्ति और उसमें लगी हुई धर्मादेकी जायदाद पूजन करनेकी हेतुसे दूसरे खान्दानमें तब्दीलकी जा सकती है मगर शर्त यह है कि जिस खान्दानकी वह देवमूर्ति है उसके सब मेम्बर राज़ी हो, देखो-17 Cal. 5678 13 C. W.N. 242.
खान्दानके सब मेम्बरों की रजामन्दीसे देवमूर्तिमें लगी हुई जायदाद किसी खास जायदादमें बदली जा सकती है और सब मेम्बरोंके निजी काममें लाई जा सकती है-4 I. A. 52; 2 Cal. 341; 16 C. W. N. 29, और देखो दफा ५२७, ८२३ ३६४.
देवोत्तर जायदाद कब बदली जासकती है-एक आदमीने देवमूर्ति में कुछ जायदाद लगादी नियम पत्रसे यह मतलब निकाला गया कि श्रीकृष्णजीके नाम वह जायदाद लगी है उन्हीके नाम कुछ जायदाद खरीदी गयी है। कुछ रुपया श्री शिवजी व अभ्य देवताओं के नाम लगाया गया था। तय हुआ कि जायदाद श्रीकृष्णजी के नाम लगी है । इसके पुजारियों और कुछ खान्दानके आदमियोंकी रायसे देवोत्तर जायदाद बदली गई तो फैसला यह हुआ कि
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