Book Title: Hindu Law
Author(s): Chandrashekhar Shukla
Publisher: Chandrashekhar Shukla

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Page 1134
________________ दफा ८७२-८७४] धर्मादेकी संस्थाके नियम १०५३ धर्मादेके धन या जायदादके सम्बन्धमें ट्रस्टका भङ्ग किया गया हो तो उसके लिये दावा दायर करे या इस बातपर ज़ोर कि पूजा ठीक ठीककी जाय या टूस्टका काम उचित रीतिसे किया जाय। दूस्टका भंग वह कहलाता है कि दूस्टकी शौका या उद्देशका पालन न करना । दावा दायर करनेके अधिकार के विषयमें नजीरे देखो स्वार्थ रखने वाले या पूजा करने वाले-24 Cal. 418, 28 Bom. 657; 15 Bom.6123 12 Bom. 247; 26 I. A. 1995 24 Bom. 50. ___ उपासक, भक्त, या स्थापक-15Bom.612 कुटुम्बका आदमी 3Bom. 27, 14 Mad. 1. (२) वे अदालतसे यह भी निर्णय करा सकते हैं कि महन्त या शिवायत या धर्मादेके किसी दूसरे मेनेजरने अपने कुप्रबन्धके कारण अपनेको उस पदके अयोग्य सिद्ध कर दिया है-6 Cal, 11 60. L. B.265 116 Bom. 612. हिसाब-यदि ऊपर कहे हुये दावेमें मुदई उस धर्मादेके हिसाबकी जांच किये जानेका भी दावा करे तो उसे दूस्टके भंग किये जानेका स्पष्ट प्रमाण देना होगा, देखो-5 Cal. 700. दफा ८७४ सार्वजनिक धर्मादेके दावेमें जाबता दीवानीको दफा ९२ का असर (१) जब सार्वजनिक धर्मादेके सम्बन्धमें अदालतमें दावा दायर करना हो तो पहले ज़ाबता दीवानी सन् १६०८ ई० की दफा १२ को समझ लेना बहुत जरूरी है उक्त दफा ३२ इस प्रकार है दफा १२-(१) जो दूस्ट (अमानत ) स्पष्ट रूपसे या उद्देशरूपसे सार्वजनिक खैरात या धार्मिक कामोंके लिये मुकर्रर किया गया हो, जब उसके नियमोंका भंग होना बयान किया जाय या उस दूस्टके प्रबन्धके लिये अदालत की हिदायत आवश्यक समझी जाय तो पडवोकेट जनरल यादोया कई आदमी जो उस दूस्टमें स्वार्थ रखते हों और एडवोकेट जनरलकी लिखित रज़ामन्दी प्राप्त कर चुके हों तो उस दीवानी अदालतमें कि जिसके इलाकेके अन्दर वह दूस्ट हो या किसी दूसरी अदालतमें जिसको प्रान्तीय सरकारने इस बारे में अधिकार दिया हो, जिसके इलाकेके अन्दर ट्रस्टका सब या कोई भी भाग हो नीचे लिखे विषयों में डिकरी प्राप्त करनेके लिये नालिश कर सकते हैं चाहे उस नालिशमें कोई भी चीज़ विरोधकी हो या न हो(क) दृस्टीकी मौकृती 24 Mad. 418; 24 Bom. 45; 33 Cal, 789, 20C. W. N. 581.

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