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दफा ८६४]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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व्यवस्था धर्मादेकी शों में ही कीगई हो तो बिलकुल साफ़ मामला होगा। न करनेकी सूरतमें रवाजसे वह हक साबित करना पड़ता है, देखो-11 B.L. R. 86-116, 18 W. R. O. R. 226-228.
धर्मादेके मेनेजरके पदका उत्तराधिकार कायम करने में वह नियम लागू होंगे जो टगोरके मामलेमें कायम किये गये थे अर्थात् यहकि उत्तराधिकार के साधारण कानूनके विरुद्ध उत्तराधिकारका कोई हक कायम नहीं किया जा सकता, देखो-जितेन्द्रमोहन टगोर बनाम शानेन्द्रमोहन टगोर | A. Sup, Vol. 47 P. 65. तथा देखो दफा ८०७. . अगर किसी धर्मादेकी मेनेजरीका हक किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दान को हो और वह खान्दान उस धर्मादेसे लाभ न उठाता हो तो उस परिवार का मर्द मुखिया अपने कुटुम्बके बटवारा होने तक उस हक्रका अधिकारी रहेगा, देखो-32 Mad. 167; 1 Mad. H. C. 415.
देवोत्तर जायदादकी मेनेजरीका हक जब किसी मिताक्षराला वाले खान्दानको होता है तो उस खान्दानका कोई भी आदमी पैदा होतेही शिवायतका अधिकारी हो जाता है, देखो-रामचन्द्र पन्डा बनाम रामकृष्ण महा. पात्र 33 Cal. 507.
स्त्रियां-पुजारीपनके पुश्तैनीपदका उत्तराधिकार मर्दके न होनेकी सूरत में स्त्रियोंको मिलता है, देखो-सीताराम भट्ट बनाम सीताराम गणेश 6Bom. H. C. A. C. 250. धर्मादेके पुश्तैनी स्त्री टूस्टियोंके लिये देखो-27 I. A. 69; 23 Mad. 1; 4 C. W. N. 329; 2 Bom. L. R. 597; 12Bom.3311 24 Mad. 219.
कोर्ट आव वार्डसू-इस विषयमें मदरास कोर्ट आव वार्डस एक्ट नं०१ सन् १९०२ की दफा ६३ इस प्रकार है-"अगर कोई कोर्ट प्रान् वार्डस्का नाबालिग किसी मन्दिर, मसजिद, धार्मिक संस्था या धर्मादेका पुश्तैनी दृस्टी या मेनेजर हो तो धर्मादेके क़ानून 'रिलिजस् एन्डोमेन्ट एक्ट नं० २० सन १८६३ की दफा २२ वीं' का कुछ ख्याल:न करके अदालत उस धर्मादे आदिके सम्बन्धमें नाबालिग्रके पदके कामको पूरा कराने के लिये जैसा प्रबन्ध उचित समझे करेगी मगर शर्त यह है कि उस धर्मादेके धार्मिक कामोंके लिये ऐसे लोगोंको नियत करेगी जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं और जहांतक सम्भव हो अदालतकी देखरेख केवल उसधर्मादेकी जायदादकी रक्षा तकही रहेगी।"
मेनेजरका कदीमी हक़-मेनेजरका हक अथवा मेनेजर नियुक्त करने का हक कदीमी हनकी हैसियतसे भी प्राप्त हो सकता है। यानी यदि कई पुश्तोंसे उसी वंशमें मेनेजरीका हक चला आता हो या ऐसा हो कि मेनेजर इसी वंशमें नियुक्त होता रहा हो तो यह भी एक प्रकारका हक़ प्राप्त हो जाता